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दूहा
१ किण' ही भीक्खू नैं कह्यौ- लागू तुझ बहु लोय।
अवगुण काढे थांहरा, स्वाम कहै तब सोय॥ २ अवगुण काढे मांहरा, 'छौ नी' काढ़ता सोय।
म्हारै अवगुण काढ़णा, माहै न राखणा कोय॥ ३ कांयक तप संजम करी, अवगुण काढ़ां आप।
कांयक लोक ओगुण करै, सम रहि काढां पाप। ४ 'सवली वेवै३ स्वामजी, इम बहु वात अनेक।
देसूरी जातां मिल्यौ, द्वेषी महाजन एक॥ ५ तिण पूछ्यौ-स्यूं नाम तुझ? भीखन नाम कहीज। तिण कह्यौ तेरापंथी ते? स्वाम
कहै-तेहीज। ६ तब कहै-तुझ मुख देखीयां, जावै नरक मझार।
पूज कहै-तुझ मुख देखीयां, किहां जावै कहौ धार? ७ मुझ मुख देख्यां सिव स्वर्ग, तब बोल्या महाराय।
म्हे तो इसडी नां कहां, मुख थी नरक सिव पाय॥ ८ पिण मुख देख्यौ थाहरौ, म्हारै तो सिव-स्वर्ग।
म्हारौ मुख देख्यौ तुम्हे, तुम्ह कहिणी तुझ नर्ग।। ९ सुणनै कष्ट हुवौ घणौ, ऐसी बुद्धि अधिकाय। वलि उत्पत्तिया बुद्धि करी, निरमळ मेल्या न्याय।।
__ ढाळ : २४
(कहै छै रूपश्री नार) १ स्वाम भीक्खू सुखदाय मणिधारी महामुनिराय हो।
भीक्खू बुद्धि भारी। अति मति श्रुति पर्यव अथाय, जसु गुण पूरा कह्या न जाय हो।
भीक्खू बुद्धि भारी। बुद्धि भारी अति अधिक अपारी, औ तौ स्वाम सदा सुखकारी हो।
भीक्खू बुद्धि भारी। १.भि. दृ. १३।
३. अनुकूल रूप में लेते हैं। २. भले ही।
४. भि. दृ. १५/
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भिक्खु जश रसायण