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________________ १ सिव संसार तणा भला, २ उरपर एक नैं, उजाड़ भीक्खू तिण ऊपर खाधौ किण झाड़ौ देई करी, ताजौ ३ पिता कहै मुझ सुत दीयौ, भाई तैं मोनैं भाई दीयौ, ४ चूड़ौ चूनरी अमर इम कहै ५ ए उपगार कर्म-बंध ६ उरपर जंत्र-मंत्र ८ खाधौ ७ संत कहै -कळ्पै ह्वै तौ दूहा रहि, मंत्रणहार नै, संसार नो, कारण कह्यौ, नहीं एक नैं, साधां बूटी जड़ी औषध नहीं, वलि कहौ, कै करामात करामात मुनि ते कहै - मुझ ते सही, कह्या दिष्टंत त्री कहै १. भि. दृ. १२९ । २. सर्प । ३. स्त्री। भिक्खु जश रसायण : ढा. २२ कहै - इसी, पिण कहौ, अणसण ९ सरणा सूंस दीया घणां, सिवगांमी मोख तणौ उपगार ए, स्वाम दुखी स्वजन मैं तिण दीया मैं कयौ १ दूजौ दृष्टंत भीक्खू दीधौ, सांभळजो लोक मोख नैं मग नहीं मेल, ते तौ २ साहुकार रै अस्त्रीयां दोय, एक वैराग अत्यंत वखांण, धर्म ने दोय थारौ ढाळ : २२ ( डाभ मूंजादिक नीं डोरी ) बहिन सगा दीधौ नहीं बोल्यौ आपौ लीयौ भेप कदे नहि दीयौ ४. चूंदड़ी (क ) । ५. भि. दृ. १३०। पुन्य मुनि किया रोवण कहै सुर उपगार । उदार || अवधार । तिवार|| भाखंत | कंत।। तंत उपगार । परिवार || सार। लिगार || सोय। मोय॥ परसीधो। कठेइ न थावै भेळ ॥ श्राविका सुद्ध अवलोय। रा पचखांण ॥ वांन। तुफान ? थाय । उचराय ॥ थाय । ओळखाय ॥ ६७
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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