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________________ ३ पंच-पंच सौ रुपीया परगट, इक-इक चोर नां लीजै। आप कृपानिधि अरज मांनी नै, चोर अग्यारा छोड़ी।। स्वाम. ४ राजा भाखै-महा अपराधी, दुष्ट घणां.. दुखदाता। छोड़वां जोग नहीं छै तसकर, मांन मछर मदमाता। स्वाम. ५ सेठ कहै-दस मूंकौ स्वामी, लाभ रूपीया रौ लीजै। तौ पिण नृप नहीं छोड़े तसकर, कहै-चोरां री पख नहिं कीजै।। स्वाम. ६ नव तसकर मूंकौ किरपानिधि, आठ सात आदि जांणी। इसी पर अर्ज करी अधिकेरी महिपति तो नहीं मांनी।। स्वाम. ७ रोकड़ पांच सौ देइ राजा नैं, चोर एक छोड़ायौ। ते पिण विनती अधिक करी तब, तसकर मूंक्यौ ताह्यौ।। स्वाम. ८ पुर ना लोक करै गुण परगट, सेठ तणा सहु कोयो। धिन-धिन लोक कहै ओ धर्मी, हरख हीयै अति होयो।। स्वाम. ९ बंधी-छोड़' लोका मैं बाजै, अधिक कीयौ उ पगारो। तसकर पिण गुण गावै तेहना, सुजस फैल्यौ संसारो॥ स्वाम. १० महिपति दस चोरां नैं मराया, इक निज स्थानक आयौ। समाचार न्यातीलां नैं सुणाया, परियणरे दुख अति पायौ।। स्वाम. ११ तसकर दश नां न्यातीला ते, भारी धेष भरांणा। ___'वैर वालण नै' भेळा हुआ बहु, प्रत्यख ही प्रगटांणा॥ स्वाम. १२ चोर सारां नैं साथै लेइ चाल्यौ, पुर दरवाजै पिछांणौ। ___चीठी बांध लोकां नैं चेतायौ, सांभळजो सहु वांणो॥ स्वाम. १३ मुझ तस्कर दश माऱ्या तिण रौ, ग्यार गुणों वैर गुणसूं। मनुष एक सौ दस मार्यां सूं, पछै विष्टालौ करतूं। स्वाम. १४ साहुकार नां पुत्र-सगां नैं, मिंत्र भणी नहीं मारूं। अवर न छोड़ें उरांणै आयौ, पंथ रह्या पिण पारूं || स्वाम. १५ एम कही जन मारण उमग्यौ, सत किणहि रौ संघारै। किणहि रौ तात भाई हर्णै किण रौं, मात किणी री मारै।। स्वाम. १. बंदी (कैदी) को मुक्त कराने वाला। ५. नजदीका २. परिजन। ६. पार पहुंचाऊं। ३. बदला लेने के लिए। ७. उमग्यौ (क)। ४. समझौता/विश्राम। ८. संहारे (क)। भिक्खु जश रसायण : ढा. २१ ६५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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