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भाखै
१ पाली' सैहर पधारीया, पूज भवोदधि पाज।
एक जणौं तिहां आवीयौ, चरचा करवा काज।। २ ऊंधो बोलंतौ कहै, दुष्ट श्रावक तुझ देख।
पासी कोई रा गळ हुंती, कालै नहीं संपेख॥ ३ थांरा म्हारा मत करौ, सांमी
सोय। समचै बात करौ सही, न्याय हियै अवलोय। ४ पासी ली किण रूंख थी, देख्यौ जावत दोय।
काढ़े नहीं ते कैहवौ, कालै तै कैहवौ होय? ५ ते कहै पासी काढ़ लै, उत्तम पुरुष ते तंत। जाणहार सिव-स्वर्ग नों, दयावंत
दीपंत॥ ६ नहीं काढ़े ते नरक रौ, जाणहार
दोभाग। भीक्खू कहै-तूं, तुझ गुरु, जाता दोनूं माग॥ ७ कुण पासी काढे कहौ कहै-हूं काढूं तिहां जाय।
मुझ गुरु तौ काडै नहीं, मुनि नैं कल्पै । ८ स्वाम कहै-सिव स्वर्ग ना, जाणहार तूं पेख।
तुझ गुरु नरक-निगोद नां, जाणहार तुझ लेख॥ ९ सुणनै कष्ट हुऔ घणौ, जाब देण असमथ।
ऐसी बुद्धि स्वामी तणी, उर में अधिक उपत्त ।।
नाय॥
ढाळ : २१
(पर नारी रो संग न कीजै) १ सावज उपगार संसार तणा छै, तिण मैं म जांणजो तंतो। पूज भीक्खू ओळखायवा परगट, दीयो इसौ दृष्टंतो॥
स्वाम भीक्खू रा दृष्टंत सुणजो ॥ध्रुवपद। २ एक नृपति चोर पकड्या अग्यारा, दूऔ६ मारण रौ दीधो।
साहुकार एक अरज करी इम, सांभळजो प्रसीधो॥ स्वाम. १. भि. दृ. १२।
४. तत्काल तर्कसंगत उत्तर देने की क्षमता। २. दुर्भागी।
५. भि. दृ. १४०। ३. असमर्थ।
६. घोपणा/आज्ञा
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भिक्खु जश रसायण