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________________ १२ पूज कह्यौ वलि पांचमौ रे, दष्टंत अधिक उदारो। कोइ तुरकादिक आकरौ रे, साथ सेन्या ले अपारो। सेन्य लेइ देश ऊपर आयौ, गांव नगर कतल करवा नैं ध्यायो। मनुष्य तिर्यंच मारण ऊंम्हायौ, सेन्य अधिकारी नां हुकम थी थायो। जी सहू कोई जी हो। १३ किण हि विचार इसौ कीयौ रे, करसी घणां जीवांरो संघारो। सेन्य अधिकारी नैं मारीयां रे, सर्व जीव वचै इण वारो। जीव वचै कतल नहीं हुवै ताह्यौ, इम जाण अधिकारी नैं पर भव पौहचायो। मार्यो ते पाप, वच्यौ पुन थायो, तिणरैलेखै इण मैं पिण मिश्र कहिवायो।। जी सहू कोई जी हो। १४ वचीया रौ धर्म बताय नैं रे, कहै लाय बुझायां धर्म। जीव अग्नि रा जीवीयां रे, तिण सूं घणा मरै ते अधर्म। अग्नि जीव्यां घणां मरै ते पापो, इण विध कर रह्या कूड़ किलापो। अग्नि जीव हणीयां मिश्र थापो, तेहनों न्याय सुणौ चुपचापो। तिण रै लेखै गायां मार्यो केवळ न पापो, जी सहू कोई जी हो।। १५ गायां भेस्यां आदि जीवसी रे, ते पिण घणी छ काय हणंतो। 'मनुषादिक पवन छत्तीस छै' रे, मछादिक जलचर जंतो। जंतु मच्छादिक जलचर जांणी, ते पिण हणै छ काय नां प्राणी। अग्नि जीव नैं हण्यां मिश्र मांणी, तिण रै लेखै ए सर्व हण्यां मिश्र जांणी। ___ जी सहू कोई जी हो। १६ संसार माहै तौ साधु बिना रे, सर्व हिंस्या रा त्याग न दीसै। पण्णवणा पद बीसमें रे, भाख्यो श्री जगदीसै। श्री जगदीस भाखी इम रेसोरे, प्राणातिपात वेरमण सु असेसो। मनुष्य विना और रै न कहेसो, बुद्धिवंत जोय विचारजो रेसो। जी सहू कोई जी हो। १. विशिष्ट जाति, वर्ग या समूह, जो संख्या २. रहस्य। में छत्तीस माने जाते हैं। ३६ कोम (पवन) के नाम देखें-राजस्थानी शब्दकोश तृतीय खंड जिल्द पृ. २४१०। भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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