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२ उत्तर भीक्खू आपीयौ रे, सांभळजो चित ल्यायो।
हळु कर्मी सुण हरखीयै रे, भारीकर्मी भिड़कायो। भारीकर्मा भिड़कै लहै तापो, तेउ जीव मुआं रौ कहै पापो।
और वच्या तिण रौ धर्म थापो, कर रह्या मूरख कूड़ किलापो। तिण री सरधा रौ लेखौ सुणआपो, नाहर मार्यो एकलौ नहीं पापो
जी सहू कोई जी हो। ३ नाहर हिल्यौ एक आकरौ रे, करै मनुषां रो बैंगाळो।
गायां भैस्यां अजा बाकरा रे, सांवर रोझ सीयालो। सांवर रोझ सियाल पिछांणौ, प्रत्यख लूट रह्यौ पर प्राणौ। जीव घणां रो करै घमसांणो, पंकप्रभा उत्कृष्ट पयांणो।।
जी सह कोई जी हो। किण ही विचार इसौ कियौ रे, ए तौ है मंस आहारी। ए जीवीयां जीव मारै घणां रे, एहवा अध्यवसाय धारी। एहवा अध्यवसाय सूं सीह मारी, उणरी सरधा रै लेखै विचारी। नाहर रौ पाप हुऔ निरधारी, और वच्यां रौ धर्म हुवौ भारी।
जी सह कोई जी हो। ५ बीजौ दृष्टंत भीक्खू दीयौ रे, छै एक पापी कसाई।
पांच-पांच सौ भैंसा नैं मारतौ, कुरणा न आंण काई। मन माहै कुरणा न आणे कांई, किण हि विचार कियौ मन माही। एहनै माऱ्या बहु जीव बचाई, एम विमासी नैं मार्यो कसाई।
__ घणां जीवां नैं वचावण तांई,
जी सह कोई जी हो।। लाय बुझायां मिश्र कहै रे, तिण री श्रद्धा रै लेखौ। कसाई नै मार्यो पिण मिश्र छै, पोता नी सरधा पेखौ। पोता नीं सरधा पेखौ निज नैणौं, पाप कसाइ नौं ए सत्य बैंणौ। जीव घणां वच्यां रौ धर्म लैणौं, पोता री सरधा लेखै कहि देणौ।
कसाई नैं माऱ्या एकंत पाप न कैहणो, जी सहू कोई जी हो।।
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१. संहार। २. सांभर (क)।
३. मांस (क)। ४. विचारी (क)।
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भिक्खु जश रसायण