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________________ ३१४ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् उस अपमानित मानसिंह द्वारा प्रेरित, सुन्दर अवसर को पाकर अन्तःकरण में विष एवं ऊपर महामधुर नीति द्वारा उस उत्साही दिल्लीश्वर ने क्षत्रियों को बहका कर उद्भट भट महाराणा प्रतापसिंह को अपना दास बनाने और उसे कलंकित करने के लिए कुपित होकर उसके साथ महान् भीषण युद्ध प्रारंभ कर दिया । ३२. दृष्ट्वा कोशबलैर्बलिष्ठमतुलं शस्त्रास्त्रसंवाहन म्लेंच्छानामधिनायकं तदपि नो क्षोभं गतो राणकः । स्मृत्वा भारतरामरावणरणं निर्णीतवानिर्णयी, चान्ते सत्यसमुन्नतो हि विजयः सत्यं हि सारं बलम् ॥ म्लेच्छों के अधिपति अकबरशाह को कोशबल, सेनाबल, शस्त्रास्त्रबल एवं वाहनबल से अत्यन्त समृद्ध देखकर महाराणा किञ्चित् भी क्षुब्ध नहीं हुए। उन्होंने महाभारत एवं राम-रावण के युद्ध की स्मृति कर यह निर्णय किया कि अन्त में सत्य की ही महान् विजय होती है और सत्य ही सार है, बल है। ३३. धर्म ध्वंसयितुं सतीः स्खलयितुं चार्याननार्यायितुं, ___ जीवं जीवकरेण संव्यथयितुं हिन्द्वाख्यया मानवान् । सर्वान् सर्वमतानुगश्छलयितुं सजायमानः सदा, वैधर्योधुरकन्धरं न सहते तं चन्द्रहासो मम ॥ धर्म को ध्वंस करने के लिए, सतियों को मार्गच्युत करने के लिए, आर्यों को अनार्य करने के लिए, हिन्दु नामधारी मानवों को जजियाकर से व्यथित करने के लिए एवं सर्व मतों के अनुयायी बनकर सबको छलने के लिए तत्पर एवं वैधर्म्य से ऊंचे कंधों के धारक ऐसे अकबर को यह मेरा चन्द्रहास (तलवार) कभी सहन नहीं कर सकता। ३४. सोप्योजस्विमनाः स्वधर्मबहलो वीराग्रणीविक्रम श्चञ्चच्चञ्चलचन्द्रहासचपलो भल्लमहोद्भासुरः। कुर्वन् स प्रससार शौर्यसमरे निर्वीरमुर्वीतलं, किं कर्त्तव्यविमूढतां प्रतिगतो यस्मात् स्वयं शत्रुराट् ॥ १. जजियाकर। २. बहल:--सघन, दृढ (नीरन्धं बहलं दृढम् –अभि० ६।८३)
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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