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________________ दशमः सर्गः ३.०९ बालमुनि भारीमालजी मुनिमण्डली में ललित, लावण्य लीलाधर के समान थे । वे अनेक कष्टों की कसौटियों से उत्तीर्ण स्वर्ण की आभा को प्राप्त थे । उन्होंने अपने अतिशय विनय आदि गुणों से चारित्रपति मुनि भिक्षु के हृदय को चुम्बक के समान आकर्षित किया। मुनि भिक्षु भी संसार में मनुष्यों क़ी परीक्षा करने में प्रवीण एक उत्तम परीक्षक थे । अतः उन्होंने बालमुनि को रत्न की तरह ग्रहण कर लिया । १५. ते पञ्चाऽपि पुरातनास्तदपर। अष्टर्षयः सङ्गता, " एवं सम्मिलितास्त्रयोदशसमे सन्तो नवं दीक्षितुम् । तन्नामानि यथाक्रमं श्रुतिवशादेतानि वेद्यानि च, पूर्व्यः श्रीस्थिरपालजीः खलु फतेचन्द्रस्तदीयाङ्गजः ॥ १६. श्रीभिक्षुमुनिटोकरो हरपुरोनाथस्ततः श्रीमहान्, भारोमालविभुश्च सप्तम इहाऽसौ वीरभाणोऽभवत् । लक्ष्मीचन्द्रऋषिस्ततो बखतयुग्रामो गुलाबाह्वयो, ह्यन्यो भारमलश्च रूपपुरतश्चन्द्रोऽन्तिमः प्रेमजीः ॥ १७. पञ्चैतेषु रघोर्जयस्य ननुं षड् द्वावन्यगच्छस्य च, सर्वेमी मिलितास्त्रयोदशवराः सन्तो लसन्तो हृदा । श्रीभिक्षं वृषसार्वभौममिव ते मत्वा ससत्त्वास्तदा, क्षोणीशा इव भक्तितो ह्यनुरताः संसेवमाना ध्रुवम् ॥ (त्रिभिविशेषकम् ) मुनि भिक्षु के साथ पांच मुनि तो पहले से ही थे और आठ अन्य मुनि, उनके साथ सम्मिलित होकर नई दीक्षा स्वीकार करने के लिए तत्पर हुए उनके क्रमशः नाम ये हैं १. मुनि थिरपाल २. मुनि फतेहचंद ३. मुनि भिक्षु : ४. मुनि टोकर ८. मुनि लक्ष्मीचंद ९. मुनि खतराम १०. मुनि गुलाब ११. नुनि भारीमाल (द्वितीय) १२. मुनि रूपचंद १३. मुनि प्रेमजी । ५. मुनि हरनाथ ६. मुनि भांरीमाल ७. मुनि वीरभाण * इन साधुओं में से पांच साधु तो रघुनाथजी के गच्छ के छह साधु : जयमलजी के तथा दो साधु अन्य गच्छ के थे । उल्लसित हृदय वाले ये सभी तेरह साधु मानो स्वामीजी की आज्ञा का वैसे ही आराधन करने लगे. जैसे सार्वभौम - चक्रवर्ती की आज्ञा का अन्य राजा आराधन करते हैं ।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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