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________________ नवमः सर्गः । २८५ करने वाले और कराने वाले दोनों का उद्देश्य शुभ हो तो वहां मुनि का प्रयत्न होता है। वहीं जैन धर्म की अवस्थिति है। यदि उद्देश्य की विषमता हो तो उस कार्य की आज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योंकि वह लौकिक कार्य होता है। यदि इन दोनों में से किसी एक का भी उद्देश्य शुभ होता है, तो भी कार्य की सिद्धि नहीं होती, वह प्रशस्य नहीं होता। १४२. श्रीमन्नेमिः स्थलजलखगप्राण्युपात्तादिकेषु, दृश्यः कार्यैः कथमपि मनाग नाचिचेष्टत् तदानीम् । तेषां तत्र स्वगमनमुखै विनीं वीक्ष्य हिंसां, स प्रत्यागान निरघकरुणः कारणं स्वं च मत्त्वा। भगवान् नेमिनाथ के विवाह के उपलक्ष्य में स्थलचर, जलचर और खेचर प्राणियों को एकत्रित किया गया था। परंतु नेमिनाथ ने दृश्य कार्योपशुओं को पकडने, निग्रह करने, मारने आदि के विषय में किंचित् भी आदेश-उपदेश या समर्थन नहीं किया था, किन्तु विवाह के अभिमुख जाने के अपने प्रयोजन (बारात के भोज) के लिए उनकी होने वाली हिंसा को देखकर, करुणाशील नेमि ने स्वयं को उस हिंसा का कारण मानकर, वे • वहां से मुड गए। १४३. एकस्येदं क्षणिकसुखदं मण्डनं मे गृहस्या ऽनेकेषां हाऽवशतनुमतां मूलतो गेहनाशः। ' तत्राऽहं स्वागमनमननात् कारणं दानवीयमेवं ध्यात्वा सदयहृदयः प्रत्यगात् सङ्गतोऽपि ॥ उन्होंने सोचा-विवाह करने से मेरे एक का क्षणिक आनन्ददायी घर तो बसेगा, किन्तु अनेक परवश और मूक प्राणियों का समूल नाश हो जाएगा। यदि मैं विवाह करने के लिए जाने की अनुमति देता हूं तो मैं इन प्राणियों की मृत्यु का दानवीय कारण बनता हूं। ऐसा सोचकर वे परम भगवान् नेमिनाथ वैवाहिक झंझट से ही विलग हो गए। १४४. यद्येवं तद्विहरणवशाद् द्रष्टुमागन्तुकाये रारम्भादौ न कथमभवत् स प्रभुर्बीजभूतः । नैवं तद्वत् तदनुपरतेः सैव मानं च यद् वा, तत्राऽसङ्गात् तदनभिमुखानिष्क्रियाद् हेतुमात्रात् ॥
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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