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________________ २८२ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् १३२. कार्यस्रष्टुर्यदि च कलुषं कारकस्यानुमन्तु द्काम्नायेङ्गितरचयितुस्तच्च नूनं कृतान्तः । स्तैन्यं कर्तुनरपतिनयान्निग्रहः पारितोषं, दद्याल्लोप्त्रग्रहणविदधत् तत्समुत्साहिनः किम् ॥ __ हिंसायुक्त प्रवृत्ति करने वाले को वदि पाप लगता है तो उस प्रवृत्ति को कराने वाले को, उसका अनुमोदन करने वाले को तथा मौन रहकर आज्ञा या संकेत करने वाले को भी निश्चित ही पाप लगेगा। यह सिद्धान्त का कथन है। राज्य-व्यवस्था के अनुसार चोरी करने वाले चोर का निग्रह किया जाता है। क्या चोरी के माल को लेने वाले तथा चोरी को प्रोत्साहन देने वाले को पारितोषिक मिलेगा ? (क्या वे दोनों दंड के भागी नहीं होंगे ?) १३३. चौरस्याऽधं यदि ननु तदा तच्च चौरापकस्य, तत्सत्ज्ञातुस्तदभिलषितोल्लेखलेखार्पकस्य । प्रोत्साहैः स्वोपधिवितरितुर्दत्तवस्वादिपाप'काराऽरोद्धस्तदपि च तथा सर्वसावद्यकृत्सु ॥ ___ यदि चोरी करने वाले चोर को पाप लगता है तो चोरी कराने वाले को, उसका अनुमोदन करने वाले को, उसके द्वारा अभिलषित उल्लेख-पत्र को अर्पित करने वाले को, प्रोत्साहन के लिए अपने उपकरण सौंपने वाले को, अपनी दी हुई वस्तु से चोरी का पाप करते हुए का निषेध न करने वाले को-इन सबको पाप का भागी होना पडता है। इसी प्रकार सभी सावध प्रवृत्तियों में ऐसा ही होता है । १३४. श्रीप्रश्नव्याकरणसमयेऽष्टादशस्तेयकारा श्चौरेणाऽमा वसनरसनादानमानादिकैश्च । तद्वद् हिंसाप्रभृतिबहुलाऽष्टादशाहः प्रका, वस्तारो ये तदिव भवितं शास्त्रतः शक्नुवन्ति । प्रश्नव्याकरण आगम में अठारह प्रकार के चोरों का उल्लेख है। उसमें कहा है कि चोरों के साथ निवास करने वाले, खान-पान करने वाले, उनके साथ आदान-प्रदान करने वाले तथा उनको सत्कार-सम्मान देने वाले भी चोर हैं। इसी प्रकार हिंसा आदि अठारह प्रकार के पापों का आचरण करने वाले, उनके साथ रहने वाले आदि भी शास्त्रीय दृष्टि से उसी पापाचरण के करने वाले होते हैं, जैसे कि चोर के साथ निवास आदि करने वाले भी चोर होते हैं। १, कृतान्त:-सिद्धान्त (राद्धसिद्धकृतेभ्योऽन्तः-अभि० २।१५६) ।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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