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________________ नवमः सर्गः २६१ .५७. नो विश्वासः पतति नभसो नोद्भवेन्नागलोकाद, 'विश्वस्ताः स्युस्त्विति मयि गिरा व्यर्थवक्तव्यमात्रात् । तज्जन्म स्यात् समयवचनासारिसत्यप्रवृत्त्या, .. नो चेत् केषां कथमिव सतां सम्भवेत् प्रत्ययः सः ॥ 'आर्यवर्य ! विश्वास कोई आकाश से नहीं टपकता. और न वह पाताल से ही उद्भूत होता है। 'तुम सब मेरे वचनों पर विश्वास रखो'इस व्यर्थ के कथनमात्र से विश्वास पैदा नहीं होता । विश्वास का जन्म होता है-सूत्रानुसारी सत्यप्रवृत्ति के द्वारा। अन्यथा वह विश्वास किसी भव्य व्यक्ति को कैसे हो सकता है ?' ५८. आकयेवं पुनरपि भृशं द्रव्यसूरिश्चुकोप, तादृग्दृश्यं नयनविषयीकृत्य भिक्षुः शुशोच । स्यान्नाऽद्येयं हृदभिलषिता कार्यसिद्धिस्त्वराभिदूरीकर्तुं कथमपि हठात् कालवाहो विधेयः ॥ यह सुनकर द्रव्याचार्य और अधिक कुपित हो गए। उस दृश्य को देखकर मुनि भिक्षु ने सोचा-इस प्रकार शीघ्रता करने से तो मेरा अभीष्ट प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। गुरु को आग्रह से दूर करने के लिए मुझे समय का अतिवाहन करना ही होगा। ५९. प्रस्तावे तं विनयविधिना प्रार्थयामासिवान् स, एतत्प्रावृट्समयवसति सार्द्धमाधातुमिच्छा। चर्चा कृत्वा वयमिह मिथो निर्णयामो नितान्तं, सत्यासत्यं किमिति समयान साधु संवीक्ष्य वीक्ष्य ।। तब मुनि भिक्षु ने आचार्य रघुनाथजी से विनम्र प्रार्थना की'गुरुदेव ! यह चातुर्मास मैं आपके ही साथ व्यतीत करना चाहता हूं। इस चातुर्मास में हम आगमों का सूक्ष्म निरीक्षण कर परस्पर चर्चा के द्वारा सत्यमसत्य का निर्णय कर लेंगे।' ६०. यत् सिद्धान्तनियमिततया सम्मतं सत्यसत्यं, तत्तद् धृत्वा तदितरमरं मोचयिष्याम एव । सत्याच्छुद्धाद् भवति तरणं स्तोकमात्रादवश्यं, मथ्याचारश्चिरपरिचितरप्यधःपातिभिः किम् ॥
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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