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________________ २४८ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् 'कहा जाता है कि मुनियों को खुले मुंह बोलते हुए दान देने वाले गृहस्थ का वचनयोग अशुद्ध है किन्तु साथ ही साथ मनयोग और काययोग शुद्ध हैं। तो फिर अनुकंपा के विषय में ऐसा क्यों नहीं माना जाता ? यदि ऐसा हो तो काययोग को अशुद्ध तथा वचनयोग को शुद्ध मानने पर शुद्ध मनोयोग से धर्म और अशुद्ध काययोग से पाप एक साथ मानना होगा ।' १२. किन्त्वेवं नो कथमपि ततः प्रोक्तहेतुः कुहेतुः, कायाऽशुद्धग्रहणमभितो कल्प्यमाप्तैनिषिद्धात । दद्याद्दाता यदि खलु लपन कश्चिदुद्घाटितास्यराज्ञाग्राह्यं तदपि च सतां क्वापि. शास्त्रेऽनिषेधात् ॥ 'किन्तु ऐसा कभी संभव नहीं है। इसलिए जो हेतु दिया है, वह कुहेतु है। दान देने वाले गृहस्थ का काययोग यदि अशुद्ध है तो उसके द्वारा दिया जाने वाला दान अकल्प्य है । आप्तपुरुषों ने इसका सर्वथा निषेध किया है.। यदि कोई दान-दाता खुले मुंह बोलते हुए भी देता है और उसका काययोग शुद्ध है तो उसके द्वारा दिये जाने वाले दान को ग्रहण करना विहित है, अर्हत् की आज्ञा में है । शास्त्रों में कहीं भी उसका निषेध नहीं है।' १३. आज्ञामुख्या जिनवरमते चिन्त्यमस्माद्धि तादृग• हेत्वाभासः कथमपि गुरो ! मिश्रितायानसिद्धिः । नो वा नद्युत्तरणतरवच्चैकसार्द्धकदाचिच्छास्त्रादेशात्प्रकृतसदऽसद्योगयुग्मप्रसिद्धिः ॥ 'गुरुदेव ! जिनशासन में आज्ञा ही मुख्य है। इस पर हमें विशेष ध्यान देना चाहिए। पूर्वोक्त हेत्वाभासों से मिश्रधर्म की सिद्धि नहीं हो सकती। नदी उतरने में शीत और ताप एक साथ होते हैं (किन्तु दोनों की अनुभूति युगपद् नहीं हो सकती) वैसे ही शुभ और अशुभ योग-दोनों एक साथ कभी भी नहीं हो सकते, ऐसा आगमों का कथन है ।' १४. यावन्त्यस्मिन् भुवनभवने कार्यजातानि यानि, त्रैधा योगैस्त्रिविधकरणः साध्यमानानि तानि । पक्षं साधं निरघमथवा संश्रयन्ते नितान्तं, ताभ्यां भिन्नः कथमपि कुतो नास्ति भेदस्तृतीयः॥ _ 'विश्व में जितने भी क्रिया-कलाप हैं वे सारे तीन करण और तीन योग से ही संपन्न होते हैं। ये करण तथा योग या तो सांवद्य होते हैं या निरवद्य । इन दो भेदों के अतिरिक्त तीसरा भेद-सावद्य-निरवद्य का मिश्रण कहीं होता ही नहीं।'
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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