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श्रीभिक्षुमहाकाव्यम्
'उनके प्रति हमारा बहुत अनुराग था और जिनशासन के उद्धार की अभिलाषा उनसे ही जागृत हुई थी। उनमें मेरु पर्वत की भांति अडोलता और समुद्र की भांति महान् गभीरिमा है ।' ६२. य एकमात्रं शरणं जिनेश्वरमतस्य रक्षाविधयेविधानतः । ___य एव नः प्रत्ययमानभाजनं, यतश्चतुर्थारकदृश्यकामना । ६३. अदर्शयत् सत्यरहांसि सूत्रतो, महौजसा मोहममत्वमोक्षकः । स्वयं हृदा स्फोटय यथार्थभाषणे, बभूव वीराग्रिमवीरसत्तमः॥
. . . . (युग्मम्) ___ 'जो जिनेश्वर मत की शास्त्रसम्मत रक्षाविधि के एकमात्र शरण हैं, जो हमारे विश्वास और प्रमाण के स्थान हैं और जिनके द्वारा हम चौथे आरे की रचना को देखने के इच्छुक हैं, उन मुनि भिक्षु ने आगम के सत्य रहस्यों को हमें बताया है। वे महाशक्ति से सम्पन्न, मोह और ममत्व को तोड़ने वाले हैं। उन्होंने अपने आप सत्य का उद्घाटन कर वीराग्रणी व्यक्तियों में उच्च स्थान प्राप्त कर लिया है।'
६४. परःशताधर्मधुरन्धरा नरा, यदाग्रहेषु ग्रहिला गुणार्थिनः ।
यदर्थमास्मो वयमुन्नतानना, यदर्थमन्यैविवदन्त उद्धराः ॥
६५. कृताः कियन्तः कलुषान्तकारिणो, मनोरमा यत्र मनोमनोरथाः । स एव हाऽस्मान् प्रविहाय निष्फलान्, कथं कदर्येषु पुनः प्रविष्टवान् ॥
(युग्मम्) 'सैकड़ों धर्मधुरन्धर व्यक्ति जिनके आग्रहयुक्त कथन में रसिक और गुणार्थी हैं, जिनके लिए हम ऊंचा मुंह कर चलते हैं, जिनके विषय में हम दूसरों से विवाद करने के लिए तत्पर रहते हैं, जिन्होंने कितने ही कलुषित अन्त:करण वालों के मनोरथों को पूरा किया है, वे हमें यों ही निष्फल छोड़कर उस शिथिलाचारी संघ में पुन: कैसे प्रविष्ट हो गए ?'
६६. किमत्र जातं किमजातवन्नवमलौकिकी का घटना प्रवत्तिता। न बुध्यतेऽथ प्रबलाय भाविने, मनो मनोहत्य ततो नमो नमः ॥ .
'यह क्या हुआ ? क्या नहीं हुआ? कौनसी अलौकिक घटना घटित हो गई ? हम कुछ भी नहीं जान पा रहे हैं। भावी बलवान है। इसलिए उस प्रबल भावी को बार-बार नमस्कार ।' . ६७. सहायकानेव समुन्नताननानधोमुखान् , कर्तुमनाः किमेषकः।
निजोत्तमाङ्गोत्तमभूषणोपमं, विजानतो ध्वंसयितुं च जीवदान् ॥...