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________________ षष्ठः सर्गः .२०१ १३४. अहो तत्सामथ्र्य कियदियदमोघं शुभमते, यतो यत्सवृत्ते ह्य दतरवकस्माज्ज्वर इयान् । ततोऽपूर्वाश्चर्यः सवयनयसत्यकनियमो, महानन्दोद्भवं विलसतितरां भिक्षुरमलम् ॥ अहो ! शुभ भावना में कैसी अमोघ शक्ति है जिसका कि स्मरण करने मात्र से ही इतना तीव्र शीतज्वर अकस्मात् दूर हो गया। दया, न्याय और सत्य के हिमायती वे महामुनि इस रोग-मुक्ति के प्रति अपूर्व आश्चर्य करते हुए महान् आनन्द का पवित्र अनुभव करने लगे। श्रीनाभेयजिनेन्द्रकारमकरोद्धर्मप्रतिष्ठां पुनर्, यः सत्याग्रहणाग्रही सहनयराचार्यभिक्षुर्महान् । तसिद्धान्तरतेन चाररचिते श्रीनत्यमल्लर्षिणा, श्रीमभिक्षुमुनीश्वरस्य चरिते सर्गोऽत्र षष्ठोऽभवत् ॥ भीनत्थमल्लर्षिणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये शीतज्वरप्रकोपनाऽऽत्मसंबोधनामा षष्ठः सर्गः ।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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