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वर्ण्यम्
मुनि भिक्षु ने राजनगर के संशयशील श्रावकों को सुना और उन्हें अवास्तविक किन्तु गुरु-मोह जनित उत्तरों से तात्कालिक समाधान देकर संतुष्ट कर दिया। उसी रात में वे तीव्र ज्वर से आक्रान्त हुए। सोचा, 'यदि इस समय मेरी मृत्यु हो जाए तो कैसी दुर्गति होगी, क्योंकि मैंने असत् प्ररूपणा कर सच को झूठ और झूठ को सच किया है। यह महानतम पातक है।' उन्होंने संकल्प किया-'यदि मैं ज्वरमुक्त हो जाऊं तो निर्भीकतापूर्वक यथार्थमार्ग की प्ररूपणा करूंगा, फिर चाहे मुझे कितने ही कष्ट क्यों न सहने पड़ें।' संकल्प फलवान् बना । मुनि भिक्षु ज्वरमुक्त हो गए।