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________________ सोलह १३-१५ पिता का देहांत हो जाने पर परिवार के भरण-पोषण का भार वहन और अपनी विलक्षणता से सामाजिक प्रतिष्ठा । १९-२३ औदार्य आदि सद्गुणों से बहु व्यक्तियों द्वारा मान्यताप्राप्त । २४-२६ गणमान्य व्यक्तियों द्वारा प्रेरित होने पर भी अत्यन्त विरक्ति के कारण परिणय की अस्वीकृति । २७-३६ ३७-४४ कुलीन पुत्रवधू को पाकर माता का हर्ष । ४५-५४ भिक्षु का दाम्पत्य जीवन । ५५- ६५ ८२-९० माता दीपां का अत्यन्त आग्रह और भिक्षु द्वारा विवाह की स्वीकृति | ६६-६७ लूंका मेहता की अवस्थिति । ६८-८१ भस्मग्रह के प्रभाव से धर्म का ह्रास । हिंसा और आडंबरपूर्ण प्रवृत्तियों का प्रचलन आदि । पार्श्वस्थ मुनिजनों का यात्रा के लिए प्रस्थान । वर्षाऋतु का वर्णन | ९८-१०२ विरक्ति की उत्कटता और सद्गुरु की खोज का उपक्रम । ९९ पार्श्वस्थ मुनियों का अहमदाबाद में पड़ाव । ९२-९३ यतियों द्वारा हस्तलिखित प्रतियों के पुनरुद्धार का चिंतन और लूंका मेहता का उसकी क्रियान्विति के लिए चुनाव । ९४-९७ लूंका मेहता द्वारा दो-दो प्रतिलिपियां - एक रात की और एक दिन की । १०३ - १०८ इस उपक्रम से लूंका मेहता के शास्त्रीय ज्ञान का विकास और जनता को प्रतिबोध | जनता का आकर्षण, यतिजनों का आक्रोश, पार्श्वस्थ मुनियों का प्रस्थान । जनता द्वारा यतिजनों का परिहार । १०९ जैन शासन के अभ्युदय का कारण । ११०-११२ चवांलीस व्यक्तियों द्वारा गृहस्थ लूंका मेहता से दीक्षा ग्रहण और 'बाईस टोले' नाम की सार्थकता । ११३-११४ लूंका मेहता विषयक अनेक किंवदन्तियां । लोंकागच्छ का प्रवर्तन | ११५-११६ धूमकेतु के युवा होने पर प्रभाव । ११७-१२० आचार्य रघुनाथजी द्वारा जैन शासन की बागडोर संभालना । उनकी विशाल संपदा । १२१-१२२ भिक्षु का रघुनाथजी से संपर्क और गुरूरूप में स्वीकरण । १२३-१३६ संयम ग्रहण के लिए पत्नी को प्रतिबोध |
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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