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वर्ण्यम्
भिक्षु की पत्नी अकस्मात् रुग्ण होकर चल बसी। पुनः विवाह के लिए माता दीपां ने तथा नगर के अन्यान्य गणमान्य व्यक्तियों ने अनुरोध किया, परन्तु भिक्षु ने स्पष्ट शब्दों में निषेध कर प्रव्रजित होने की बात कही। उन्होंने प्रव्रज्या की कसौटी पर स्वयं को कसा और अपने को पूर्ण योग्य पाकर दीक्षित होने का दृढ़ संकल्प कर लिया। मां दीपां ने विविध प्रकार से समझाया, परंतु भिक्षु अपने संकल्प से विचलित नहीं हुए। मां दीपां भी 'दीक्षा न देने के अपने कथन पर अडिग थी। आचार्य रुघनाथजी ने उसे समझाया । उसने सिंह के स्वप्न की बात कही। आचार्य ने स्वप्न को यथार्थ बनाने का सहेतुक उपाय बताया। मां ने दीक्षा की स्वीकृति दे दी। भिक्षु दीक्षा ग्रहण करने कंटालिया से बगडी आए।