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के पश्चात् लक्ष्मी जी, सरस्वती जी, गणेश जी, की स्तुति की।
विंशतितम सर्ग - इसके बाद सम्राट भरत से मिलने की इच्छा से जयकुमार अयोध्या की और प्रस्थान किया। जयकुमार ने राज्यसभा में सिंहासन पर विराजमान सम्राट भरत को प्रणाम किया। सम्राट भरत के वात्सल्य पूर्ण वचनों से सन्तुष्ट होकर जयकुमार ने क्षमायाचना पूर्वक सुलोचना स्वयंबर का सारा वृत्तान्त सुनाया। सम्राट भरत ने जयकुमार के वचनों को सुनकर अर्ककीर्ति को ही दोषी ठहराया। काशी नरेश अकम्पन के प्रति प्रशंसात्मक वचन कहे और अक्षमाला व अर्ककीर्ति के विवाह करने हेतु उनकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की। सम्राट से अनुमति लेकर जयकुमार हाथी पर सवार होकर अपनी सेना की ओर चल पड़ा। मार्ग में गंगा नदी के तट पर एक मछली ने जयकुमार का अपहरन करने की इच्छा से उनके हाथी को पकड़ लिया। यह देखकर राजा जयकुमार अत्यधिक व्याकुल हो गया। इधर सुलोचना भी अपने पति की प्रतिक्षा कर रही थी। पति को संकट में देखकर उनको बचाने के लिए गंगा नदी में उतर गयी। उन्होंने गंगा नदी से प्रार्थना की व उसके शील के तेज से गंगा का. जल कम हो गया। तथा मछली से जयकुमार को छोड़ दिया। सुलोचना के सतीत्व धर्म से प्रभावित होकर गंगा देवी ने सुलोचना की दिव्यवस्त्र आभूषणों से पूजा की। यह देखकर जयकुमार अत्यधिक चकित रह गया। उसको इस प्रकार देखकर गंगा देवी ने कहा कि वह उनकी पूर्व जन्म की दासी है। सर्पिणी के काटने से देवी का जन्म प्राप्त हुआ है। यह जो मछली थी वह पूर्व जन्म में सर्पिणी थी, यही काली देवी हुई। पूर्वजन्म के क्रोध के कारण यह जयकुमार को पकडने आयी थी। जयकुमार ने गंगादेवी के प्रति आभार प्रदर्शन किया। सुलोचना ने जयकुमार की पूजा की।
एकविंशतितम सर्ग - जयकुमार की आज्ञा पाकर उत्सुकता से पूर्ण सैनिकों ने हस्तिनापुर जाने की तैयारी कर ली। जयकुमार ने रथ पर आरूढ़ होकर सुलोचना के साथ प्रस्थान किया। रास्ते भर सुलोचना का मनोरंजन करते हुए वह एक वन में पहुँचे। वहाँ भीलों के राजा ने जयकुमार को भेंट में गजमुक्ता, फल, पुष्पादि दिये। सुलोचना गोपों की बस्ती देखकर आनन्द मुख हो रही थी। गोप गोपियों ने दूध, दही व आदर सत्कार से जयकुमार व सुलोचना को प्रसन्न किया। जयकुमार ने उनसे प्रेम पूर्वक विदा ली। गोपों की बस्ती से निकलकर पुनः हस्तिनापुर की ओर यात्रा आरम्भ की। हस्तिनापुर पहुँचने पर जयकुमार और सुलोचना का मन्त्रियों ने स्वागत किया। प्रजाजनों ने भी अपने राजा - रानी का हर्ष उल्लास के साथ सम्मान किया। नगर की स्त्रियाँ नववधू का मुख देखने की तीव्र इच्छा से राजमहल में आ गयी। उन्होंने
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