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________________ ६४ पाइयपडिबिंबो अवसर की प्रतीक्षा करने लगी । एक दिन राजमाता सोई हुई थी । वहां कोई नहीं था । सहसा देवदत्ता उधर से निकली । उसने राजमाता को एकाकी वहां सोई हुई देखा । उसे मारने का उचित अवसर देखकर वह रसोई घर में गई। एक लोहदंड को गर्म कर, उसे लेकर राजमाता के पास आई और उसे उसके गुह्यप्रदेश में घुसेड़ कर चली गई। राजमाता के मुख से चीख निकली और वह मर गई। चीख सुनकर आस-पास काम करने वाली दासियां दौड़कर आईं। उन्होंने रानी देवदत्ता को जाते हुए देखा । उनके मन में विचार आया-देवदत्ता राजमाता के पास न जाकर इधर कैसे जा रही है ? वे राजमाता के पास आईं। उसे मृत पाया। उन्होंने सोचाइसे रानी देवदत्ता ने ही मारा है। ऐसे चिंतन कर वे राजा पुष्यनंदी के समीप आईं और कहा-आपकी माता को रानी देवदत्ता ने मार दिया है। यह सुनकर राजा मूच्छित हो गया। उपचार करने पर उसकी मूर्छा दूर हो गई। वह राजमाता के पास आया और उसका दाह संस्कार किया। महलों में आने के बाद राजा पुष्यनन्दी के मन में विचार आयारानी देवदत्ता ने वह कार्य किया है जो सामान्य स्त्री नहीं कर सकती। अतः इसे इस प्रकार का दंड देना चाहिए जिससे जनता को शिक्षा मिले । ऐसा सोचकर उसने देवदत्ता को बुलाया और उसकी भर्त्सना करते हुए कहातुम मेरे महलों में रहने योग्य नहीं हो । तुमने सास की सेवा करना तो दूर प्रत्युत उसे मार दिया है । अतः तुम्हें जीने का अधिकार नहीं है। ऐसा कहकर उसने राजपुरुषों से कहा-इस दुष्टा को नगर के चौराहे पर ले जाओ और मनुष्यों से कहो-इस दुष्ट रानी ने राजा पुष्यनन्दी की माता को मार दिया है । अतः राजा ने इसे इस प्रकार का दंड दिया है, ऐसा कहकर इसके नाक, कान काटकर इसको अवकोटक बंधन (रस्सी से गले और हाथ को मोड़कर पृष्ठ भाग के साथ बांधना) से बांध कर, इसका मांस काटकर, इसको वह मांस खिलाकर शूली पर चढ़ा कर मार देना । राजपुरुष रानी देवदत्ता को नगर के चौराहे पर ले गये और राजा के कथनानुसार उसे दंडित करने लगे। उसी समय श्रमण भगवान् महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर गौतम भिक्षार्थ नगर में जा रहे थे। उन्होंने राजपुरुषों द्वारा दंडित की जाती हुई देवदत्ता को देखा। उसे देखकर उनके मन में विचार आया-यह स्त्री कौन है ? इसने पूर्वभव में ऐसे कौन से कर्म किये
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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