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ललियंगचरियं
४५. तुमने राजकुमारी को नेत्रदान करके मेरा दुःख नष्ट कर दिया है । मैं
जीवन भर तुम्हारे इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगा। ४६. मैं वचनानुसार तुम्हें आधा राज्य और अपनी रूपवती कन्या देता हूं।
तुम उसको शीघ्र ग्रहण करके मेरे पर अनुग्रह करो। ४७. राजा की वाणी सुनकर विनयी और विवेकी राजकुमार ने राजा से
कहा - मुझे राज्य और राजकुमारी की कांक्षा नहीं है । मैंने तो अपने
कर्तव्य का पालन किया है। .. ४८. आप किसी अन्य व्यक्ति के साथ राजकुमारी का विवाह कर दें और
सुखपूर्वक राज्य का पालन करें। मेरे में इसकी योग्यता नहीं है। ४९. कुमार की वाणी सुनकर राजा ने कहा-संसार में वह व्यक्ति मूढ माना
गया है जो घर के आंगन में आई हुई लक्ष्मी और कामधेनु को दुत्कारता
५०. जिस व्यक्ति ने रत्न को देखा है क्या वह कभी पत्थर चाहता है ? आप
जैसे व्यक्ति को पाकर मैं स्वप्न में भी किसी अन्य की इच्छा नहीं करता
५१. कृपा कर मेरे वचन को स्वीकार करें। अब विलंब न करें । राजा के
आग्रह को देखकर कुमार कुछ झुका । ५२. कुमार को आधा राज्य देकर तथा उसके साथ राजकुमारी का विवाह ___ करके राजा अपने मन में बहुत प्रसन्न हुआ। ५३. दिये हुए वचन का पालन कर महान् व्यक्तियों का हृदय प्रसन्न होता है।
नीच व्यक्तियों का मन दिये हुए वचन का पालन करने में दुःखी होता
५४. राज्य को प्राप्त करके भी कुमार सुखद धर्म को नहीं छोड़ता है ।
जिसने नदी का मधुर जल पीया है क्या वह समुद्र का खारा जल पीयेगा?
तृतीय सर्ग समाप्त . ...