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तृतीय सर्ग
१. दुःख प्राप्त करके भी जो व्यक्ति धर्म को नहीं छोड़ते वे संसार में विरले ही हैं । प्रायः मनुष्य दुःख को पाकर चिरसेवित धर्म को छोड़
देते हैं। २. मनुष्यों को संसार में सदा ही सुख और दुःख में धर्म की आराधना
करनी चाहिए । सुख के समय धर्म की आराधना करने से मनुष्यों का
सुख सदा बढता है। ३. दु:ख के समय धर्म की आराधना करने से मनुष्यों का दुःख नष्ट होता है । अतः सुखाभिलाषी व्यक्तियों को संसार में कभी भी धर्म को नहीं
छोड़ना चाहिए। ४. प्रचुर दुःख पाकर भी कुमार ने धर्म को नहीं छोड़ा। वह उस वट-वृक्ष
के नीचे बैठकर परमेष्ठी मंत्र का ध्यान करने लगा। ... ५. संध्या-समय उस वट-वृक्ष के ऊपर कुछ भारंड पक्षी आकर इस प्रकार
रहस्यपूर्ण बात करने लगे६. ये अब क्या बात करते हैं ? - विस्मित होकर कुमार सुनने लगा।
क्योंकि वह पक्षियों की भाषा जानता था। . . ७. मनुष्यों को आलस छोड़कर सदा नवीन भाषाओं का अध्ययन करना
चाहिए। इससे भाषा का ज्ञान होता है और गूढ रहस्यों की प्राप्ति हो
सकती है। ८. एक भारंड पक्षी ने तब दूसरे भारंड पक्षी से कहा यहां से पूर्व ___दिशा में चंपा नामक एक समृद्ध नगरी है। ९. वहां जितशत्रु नामक एक दयालु राजा राज्य करता है। उसके
पुष्पावती नामक एक सर्वगुणसंपन्न कन्या है ।