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________________ ललियंगरियं २२. पिता के आदेश को सुनकर उसके मन में बहुत दुःख हुआ। परतंत्र व्यक्ति संसार में क्या कर सकता है ? २३. दूसरे दिन अनेक याचक मांगने के लिए आये किंतु ललितांग ने सबको दान नहीं दिया। २४. जिन्होंने दान प्राप्त किया वे उसकी प्रशंसा करके चले गये और जिन्होंने .. नहीं पाया वे उसकी इस प्रकार निंदा करके चले गये२५. आज कुमार हमारे साथ विषम व्यवहार क्यों कर रहा है ? इस प्रकार का विषम व्यवहार उचित नहीं है। २६. जो मनुष्यों के साथ विषम व्यवहार करता है वह संसार में कभी भी प्रियता को प्राप्त नहीं करता। २७. अपनी निंदा सुनकर भी कुमार ने पिता के आदेश के भय से उसे अनसुनी (नहीं सुने हुए) कर दी और उसने अपना विषम व्यवहार नहीं छोड़ा। २८. उसका अयश सुनकर सज्जन मन में बहुत प्रसन्न हुआ। जो मित्र की अकीर्ति को सुनकर प्रसन्न होता है वह मित्र नहीं है । २९. एक दिन कई याचक उससे दान लेने के लिए आये। कुमार ने पूर्ववत् कुछ को दान दिया और कुछ को नहीं । . ३०. उसके इस व्यवहार को देखकर एक वाचाल याचक ने, जिसने दान प्राप्त नहीं किया था, दुःखी होकर कुमार से कहा३१. कुमार तुम पारस-रत्न के समान हो। फिर भी क्यों कृपण बन रहे __ हो? यह अच्छा नहीं है। ३२. संसार में उदारता से ही सदा मनुष्य की लक्ष्मी बढ़ती है। उदारता से ही वह उज्ज्वल यश को प्राप्त करता है । ३३. तुम्हारे द्वार पर आया हुआ कोई भी आज तक खाली नहीं गया है । ___ इसलिए तुम्हें कभी भी उदारता नहीं छोड़नी चाहिए ।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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