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कथावस्तु
के कुपित होने का कारण पूछा। राजा जितशत्रु ने सज्जन द्वारा कथित सब वृत्तान्त सुना दिया। मंत्री जामाता के पास आया और उसने राजा को सज्जन द्वारा कथित सब बात सुना दी। उसे सुनकर राजा ललितांग को अनुभव हुआ- सज्जन ने राजा जितशत्रु को भ्रांत बना दिया था। उसने सब स्पष्टीकरण किया । मंत्री राजा जितशत्रु के समीप आया और उसके संशय को दूर किया। राजा जितशत्रु जामाता के पास आया और उससे क्षमायाचना की। दोनों का संशय दूर हो गया । कालान्तर में राजा जितशत्रु ने ललितांगकमार को अपना राज्य देकर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। राजा ललितांग अपने पिता राजा नरवाहन के समीप आया। चिरकाल से बिछुड़े अपने पुत्र को देखकर राजा नरवाहन का मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने भी ललितांगकुमार को अपना राज्य-भार सौंप कर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। कुछ वर्षों तक राज्य कर राजा ललितांग ने भी प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। शुद्ध चारित्र का पालन कर अंत में अनशन कर वह स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। वहां से - च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर वह सब कर्मों को नष्ट कर मोक्ष प्राप्त करेगा।