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________________ कथावस्तु हमारी बीट को वट वृक्ष की लता के रस में मिला कर, लेप बना आंखों पर लगा दिया जाये तो उसकी आंखों की ज्योति आ सकती है। ललितांगकुमार ने यह सुन लिया। उसने सर्वप्रथम उसका अपने पर प्रयोग करने के लिए हाथ फैलाया। कुछ बीट और लताएं उसके हाथ में आ गई। उसने भारंडपक्षी के कथनानुसार लेप बनाया और अपनी आंखों पर लगा दिया। उसके नयन पुनः ठीक हो गये। धर्म के प्रति उसकी श्रद्धा बढ़ गई। ललितांगकुमार वहां से कुछ बीट और लताएं लेकर चंपानगरी की ओर रवाना हुआ। वह राजमहल पहुंचा। द्वारपाल द्वारा राजा को अपने आगमन की सूचना देते हुए कहा- राजकुमारी के नेत्र ठीक करने के लिए श्रीवास नगर से कोई वैद्य आया है । राजा ने उसे भीतर बुलाया । ललितांग कुमार ने बीट को पीस कर वट वृक्ष की लताओं के रस में मिला कर लेप बनाया और राजकुमारी के आंखों पर लगा दिया। उससे नयनों की ज्योति पुनः आ गई । राजा की प्रसन्नता का पार नहीं रहा । उसने अपनी घोषणा के अनुसार राजकुमारी का पाणिग्रहण कुमार के साथ कर दिया और आधा राज्य भी दे दिया। धर्म के प्रभाव से ललितांगकुमार राजा बन गया। ___ एक बार राजा ललितांग अपने महलों में बैठा राजपथ को देख रहा था। उसने राजपथ पर भिखारी रूप में जाते हुए सज्जन को देखा। उसने अपने नौकर को भेजकर उसे महल में बुलवाया। राजा का आदेश सुनकर सज्जन भयभीत हुआ । उसने सेवक से राजा द्वारा बुलाने का कारण पूछा। सेवक ने कहा- मुझे मालूम नहीं। सज्जन उसके साथ महल में आया । ललितांगकुमार को राजा रूप में देखकर उसका भय दूर हो गया। उसने राजा ललितांगकुमार से पूछा- तुम्हें यह राज्य कैसे मिला ? राजा ललितांग ने सब बातें बताई। उसने सज्जन से पूछा- तुम्हारी यह दशा कैसे हुई ? तब सज्जन ने अपनी बात बताते हुए कहा- 'तुम्हें वन में छोड़कर जब मैं रवाना हुआ तब रास्ते में चोर मिल गये। उन्होंने मेरे से घोड़ा, आभरण आदि छीन लिए और मुझे मार-पीट कर छोड़ दिया। आजीविका हेतु अन्य मार्ग न मिलने पर मैंने भीख मांगना शुरू कर दिया।' सज्जन के मुख से उसका घटित वृत्तान्त सुनकर राजा ललितांग दयार्द्र हो गया। उसने सज्जन से कहा- तुम यहां आनंदपूर्वक रहो पर तुम्हें अपने स्वभाव में परिवर्तन करना है। किंतु स्वभाव को बदलना सरल कार्य नहीं है । राजा ललितांग का जब कभी अपने श्वसुर राजा जितशत्र के साथ कोई कार्य होता तब वह सज्जन को वहां भेज देता। इस प्रकार सज्जन का राजा जितशत्रु के साथ परिचय हो गया। एक दिन राजा जितशत्रु ने सज्जन से
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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