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आपके पति राजा सिंहसेन मरणोपरान्त अशनिघोष हाथी हुए । एक दिन वह हाथी | मुझे मारने आया तो मैंने समझाकर आत्मोद्धारक व्रत धारण कराया ।
' वह एक बार मासोपवासी व्रत की पारणा के लिए नदी में पानी पीने गया और महापङ्क में फंसकर धर्म भावना से समाधि ले ली । सत्यघोष का जीव भी चमरमृग हुआ, वह मृग मरकर फिर सर्प हुआ और इसने अशनिघोष हाथी के मस्तक में काट खाया। वह हाथी सहस्रार स्वर्ग के रविप्रभ विमान में श्रीधर नामक देव हुआ । धम्मिल मंत्री का जीव जो बन्दर हुआ था उसने उस सर्प को मार डाला और सर्प रौद्रपरिणाम से मरने के कारण तीसरे नरक में पहुँचा । व्याघ्र ने उस हाथी के दाँतों और मस्तकस्थ मोती को ले जाकर धनमित्र सेठ को बेच दिये जिन्हें सेठ ने वर्तमान राजा पूर्णचन्द्र को भेंट कर दिया ।
पञ्चम सर्ग - सिंहचन्द्र द्वारा सुनाये गये पूर्ववृतान्त को सुनकर रामदत्ता ने पूर्णचन्द्र के पास आकर भोगविलास के कष्टों का बखान किया और त्यागमय जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी और सिंहचन्द्र द्वारा कथित सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया । उसके उपदेश से प्रभावित होकर पूर्णचन्द्र भगवान् अर्हन्त की नियमित आराधना करते हुए गृहस्थ धर्म का पालन करने लगा।
यहाँ रामदत्ता ने भी समाधि के द्वारा शरीर त्याग किया। जिससे स्वर्ग पहुँचकर सोलह सागर की आयु वाले भास्कर देव के रूप में स्वर्ग के सुख भोगने लगी । राजा पूर्ण चन्द्र भी महाशुभ भावों से मरण होने के कारण महाशुक्र नामक दशमें स्वर्ग में जाकर वैडूर्य नामक विमान का अधिपति देव हुआ । जिसकी सोलह सागर की आयु थी । मुनिराज सिंहचन्द्र ने कठिन साधना की अतएव वह अन्तिम ग्रैवेयक स्वर्ग में पहुँचकर इकतीस सागर की आयुका धारक अहमिन्द्र बना ।
विजयार्द्ध पर्वत के दक्षिण में धरणीतिलक नामक नगर में आदित्यवेग राजा हुआ उसकी सुलक्षणा रानी के उदर से रामदत्ता के जीव भास्करदेव ने पुत्री श्रीधरा के रूप में जन्म लिया। अलकापुरी के दर्शन राजा के साथ श्रीधरा का विवाह भी भास्करपुर के राजा सूर्यावर्त के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ । सिंहसेन राजा का जीव (श्रीधर देव था) इन दोनों का पुत्र रश्मिवेग हुआ । सूर्यावर्त ने रश्मिवेग को राज्यभार सौंपा और स्वयं मुनि बन गया तथा श्रीधरा और यशोधरा ने भी आर्यिका धर्म स्वीकार कर लिया।
एक दिन पूजनार्थ आये हुए रश्मिवेग की भेंट जिन मन्दिर में मुनि हरिश्चन्द्र से हुई, मुनि को प्रणाम करके उनके प्रवचन सुने । जिनसे प्रेरित होकर वह योगी बन गया और योगसाधना करते हुए कंचनगिरि की गुफा में विराजमान था कि वन्दनार्थ आयी हुई यशोधरा
और श्रीधरा आर्यिकाएँ भी वहाँ पहुँची । इस समय सत्यघोष के पापी जीव ने अजगर की योनि में जन्म लिया था उसने उस गुफा में आकर रश्मिवेग, श्रीधरा, यशोधरा को खा लिया। ये तीनों चौदह सागर की आयु वाले कापिष्ठ स्वर्ग के देव हुए और अजगर भी मरणोपरान्त पङ्कप्रभ नरक में जाकर दुःसह कष्ट भोगने लगा।
षष्ठ सर्ग - भरत क्षेत्र में ही चक्रपुर नामक नगर में अपराजित राज्य हुआ, उसकी अत्यन्त लावण्यमयी "सुन्दर" नामक रानी थी । सिंहचन्द्र का जीव इनका पुत्र चक्रयुध हुआ। युवावस्था के समय उसने चित्रमाता सहित पाँच हजार बालाओं को स्वीकार किया। रश्मि वेग ने चित्रमाला के वज्रायुध नामक पुत्र के रूप में जन्म लिया । किसी समय पृथ्वीतिलक