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स्थिति में हिंसा से सर्वथा दूर नहीं हो सकता फिर भी तेरे जाल में जो जीव पहले आवे उसे छोड़ देना, मुनि के मन्तव्य से सहमत होकर उसने पहले आये हुए जीव को नहीं मारने की प्रतिज्ञा की।
द्वितीय लम्ब - यह धीवर शिप्रा नदी के तट पर पहुँचकर नदी के जल में जाल बिछाया । उसके जाल में "रोहित" नामक मछली फंस गयी धीवर ने उसे अपनी प्रतिज्ञानुसार विशेष चिह्न से चिह्नित करके छोड़ दिया। इसके पश्चात् क्रमशः चार बार वही मछली जाल में आती गयी और वह प्रत्येक बार उसे नियमपूर्वक छोड़ता रहा । सांयकाल निष्फल होकर घर लौटा । उसकी पत्नी (घण्टा) ने खाली हाथ घर लौटने का कारण पूछा। मृगसेन ने अपनी पत्नी को सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया और अपने दृढ़ निश्चय को भी स्पष्ट किया धीवर ने जैन साधु के प्रभाव में रहने के लिए पति को दोषी ठहराया मृगसेन धीवर ने वेद, उपनिषद, पुराण आदि के दृष्टान्तों से भी धीवरी समझाने का बहुत प्रयास किया किन्तु धीवरी ने उसके सभी तर्कों को अस्वीकार कर दिया । और अपने गृह संसार का अवसान समझकर क्रोधपूर्वक पति को घर से निष्कासित कर दिया । पत्नी के इस व्यवहार से रुष्ट मृगसेन परिवार के प्रति उदासीन हो गया और उसके मन में यह विचार उठे -
येषां कृते नित्यमनर्थकर्तुरद्येव किञ्चद्विपरीतभर्तुः ।
जनैरुपादायि विरुद्धभाव इवाशु वंशैर्विपिनेऽपि दावः ॥1 इस प्रकार अपमानित मृगसेन एक वृक्ष में नीचे जाकर विश्राम करने लगा तथा उसे अत्यन्त थकावट के कारण नींद आ गयी । तदनन्तर किसी भयङ्कर सर्प ने उसे डस लिया। जिससे उसकी मृत्यु हो गयी । अब वह (इस बालक के रूप में) धनपाल का पुत्र सोमदत्त है"।
अपने पति मगृसे को घर से निष्कासित करने के पश्चात् घण्टा नामक धीवरी पश्चाताप करने लगी और अपने पति को खोजने निकली। कुछ देर पश्चात् मृगसेन को वृक्ष के नीचे मृतावस्था में देखकर विलाप करने लगी । शोकाकुल धीवरी ने अहिंसा व्रत के पालन का निश्चय किया। पति के शव पर अवनत उसको भी उसी सर्प ने डस लिया जिससे धीवरी भी मर गई और मरणोपरान्त वह भी उज्जयिनी में सेठ गुणपाल की पुत्री "विषा" के रूप में अवतरित हुई दोनों के पूर्वभव के संयोग होने से इस भव में भी संयोग सुनिश्चित है।
तृतीय लम्ब - इस सर्ग में प्रारम्भिक कथासूत्र को पुनः व्यवस्थित किया है । उन दो मुनियों के वार्तालाप को सेठ गुणपाल ने सुन लिया जिससे वह अत्यधिक चिन्तित होकर अपनी पुत्री "विषा"के जीवन (भविष्य) पर लगे प्रश्नचिह्न से व्यथित हुआ और उस"सोमदत्त" नामक बालक को मरवाने का प्रयत्न करने लगा उसने चाण्डाल को बुलाकर धन का प्रलोभन दिया तथा उस चाण्डाल ने भी सेठ के समक्ष "सोमदत्त" को मारने की प्रतिज्ञा की और सेठ से पर्याप्त धन ले लिया किन्तु चाण्डाल ने रात्रि में गाँव के बाहर नदी के तट पर जामुन के वृक्ष के नीचे उस बालक को छोड़ दिया। चाण्डाल उस निर्दोष एवं उदार सोमदत्त की हत्या नहीं कर सका । प्रातःकाल गोविन्द नामक ग्वाल गायों के साथ आया और वह विपन्नावस्था में पड़े हुए बालक को प्रसन्नतापूर्वक अपने घर ले गया । निःसन्तान ग्वाल दम्पत्ति सस्नेह सोमदत्त का पालन पोषण करने लगे, वह भी उन्हें अपना माता-पिता समझने लगा ।
चतुर्थ लम्ब - इस सर्ग में कथाक्रम की नाटकीय गतिशीलता दर्शनीय है । एक दिन गुणपाल सेठ किसी कार्यवश ग्वालों के गाँव आया । उसने सोमदत्त को जीवित देखकर