SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - 462 - - उदार, सुशीला, जल्लाशीला, पतिव्रत एवं अत्यन्त लावण्यमयी थी। राजा-रानी परस्पर अत्यन्त प्रेम करते थे। चतुर्थ सर्ग - वर्षा ऋतु रमणीय वातावरण में आषाढ़ मास की षष्ठी तिथि में प्रियकारिणी के गर्भवती होने का विवेचन है । वर्षाकालीन प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यन्त नयनाभिराम होता है । रात्रि के अन्तिम प्रहर में प्रियकारिणी ने 16 स्वप्न देखे जिन्हें वह प्रात:काल होने पर अपनी सहेलियों के साथ अपने पति सिद्धार्थ के पास जाकर क्रमशः बखान करती है । इन स्वप्नों का फल सिद्धार्थ स्पष्ट करते हैं - पहला स्वप्न - रानी को ऐरावत हाथी दिखाई दिया - इसका तात्पर्य है कि गर्भस्थ पुत्र मदस्रावीगज के समान महादानी होगा । दूसरा स्वप्न - वृषभ देखा - आशय यह कि गर्भस्थ पुत्र धर्म की धुरी को धारण करेगा । तीसरा स्वप्न - केसरी देखा - इसका अर्थ है कि गर्भस्थ शिशु दुराग्रह-पीड़ितों एवं मूल् के गर्व को नष्ट करेगा । . चौथा स्वप्न - गजलक्ष्मी देखी - इसका मतलब है - गर्भस्थ बालक इन्द्रादि देवताओं द्वारा सुमेरे शिखर पर अभिषिक्त होगा । पाँचवा स्वप्न - भ्रमरों से गुञ्जन करती हुई दो मालाएँ देखी - इससे यह आभास होता है कि गर्भस्थ पुत्र अपनी यश सुरभि से सर्वत्र प्रसिद्ध और सम्मानित होगा । छठवां स्वप्न - चन्द्रमा देखा - इससे प्रतिभासित होता है कि उदरस्थ बालक सर्वगुण सम्पन्न एवं निष्णात होगा । सातवाँ स्वप्न - सूर्य का दर्शन हुआ । यह स्वप्न इस ओर संकेत करता है कि गर्भस्थ पुत्र अज्ञानरूप अन्धकार को नष्ट करके ज्ञानरूप प्रकाश एवं प्रताप को दीप्त करेगा। ___ आठवाँ स्वप्न - जलूपर्ण दो कलश देखे - परिणामत: उदरस्थ पुत्र, परम् कल्याण करने वाला तथा मानवमात्र को तृप्त करेगा । नौवां स्वप्न - जल क्रीड़ा करती हुई दो मछलियाँ देखीं - फलतः यह पुत्र अपनी आनन्द क्रीडाओं से प्रसन्न रहकर जनजीवन को भी प्रभावित करेगा । दसवाँ स्वप्न - कमलमय सरोवर देखा - यह स्वप्न सूचित करता है कि गर्भस्थ । शिशु उत्तम लक्षणों को धारण करेगा तथा मनुष्यों के दुःख सन्ताप नष्ट करेगा । ग्यारहवाँ स्वप्न - समुद्र देखा - इसका तात्पर्य यह है कि यह बालक अत्यन्त गम्भीर प्रकृति का तथा सभी सिद्धियों का स्वामी होगा । . बारहवाँ स्वप्न - सुन्दर सिंहासन देखा - इसका भावार्थ है कि यह पुत्र उत्तम स्थान का अधिकारी होगा तथा उत्तम कान्तियुक्त, कल्याणकारी पद प्राप्त करेगा। तेरहवा स्वप्न - देवसेवित विमान देखा - आशय स्पष्ट है कि यह पुत्र मोक्षपथ का अनुसरण करेगा तथा सत्पथ की ओर प्रेरित करेगा । चौदहवाँ स्वप्न - धवल नागमन्दिर देखा - अर्थात् उज्ज्वल यश के कारण देवस्थान का आनन्द प्राप्त करेगा। HABINADEDEIODERN .
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy