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________________ 25 से अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह वाद के उच्च आदर्शों को संस्कृत काव्य की मुख्य धारा से सम्पृक्त किया । उनका यह प्रयत्न पर्याप्त पल्लवित और फलीभूत भी हुआ । इसी का लेखा-जोखा प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के आगे के अध्यायों में निदर्शित है । फट नोट 7अ. 1. संस्कृत शब्द के अन्य विशिष्ट प्रयोगों के अर्थ ज्ञान के लिए द्रष्टव्य वामन शिवराम आप्टे, संस्कृत-हिन्दी-कोश प्र. मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी 1977 ई. पृ. 1051 2. जन सामान्य में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी . इसके विस्तृत विश्लेषण के लिए डॉ. बलदेव उपाध्यायः संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ, 21-25 यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृताम् । रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति । सुन्दरकाण्ड5/14 निरुक्त 1/4 अष्टाध्यायी-3/2/108 काव्यादर्श 1/33 विस्तृत विवेचन के लिए द्रष्टव्य (1) एन इंट्रोडक्शन टू कम्परेटिव फिलालॉजी डॉ. पी. डी. गुणे, 1950 पृ, 163 (2) डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्राकृत भाषा और साहित्य का आलो. इतिहास पृ. 7 द्रष्टव्य-संस्कृत साहित्य का इतिहास : लेखक डॉ. जर्नार्दन स्वरूप अग्रवाल, प्रका. स्टुडेंट्स स्टोर्स बरेली 1971 के पृ. 4 पर उद्धृत डॉ. एम. विंटरनित्स का मत । 8. इसके विशेष ज्ञान के लिए द्रष्टव्य डॉ. रामजी उपाध्यायः संस्कृत साहित्य का आलो. इति (इलाहाबाद, 2018 वि. सं. पृ. 3-21.) 9. विस्तार के लिए दे. भरत मुनिः नाट्य शास्त्र द्रष्टव्यः सायण का तैत्तिरीय आरण्यक भाष्य, श्लोक 6. द्रष्टव्यः संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, ले. डॉ. रामजी उपाध्याय, प्रकाशक-रामनारायण बेनीमाधव, इलाहाबाद, पृ. 325 । जैन पुराणों के विस्तृत परिचय के लिए द्रष्टव्य; डॉ. भागचन्द्र जैन "भागेन्दु" द्वारा सम्पादित साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन अभिनन्दन, ग्रन्थ, सागर, 1990 तृतीय खण्ड। विस्तार के लिए दे. रामदास गौड़ लिखित हिन्दुत्व, प्र. शिव प्रसाद गुप्त काशी, 1995 वि. पृ. 445-46 । यह भारत में अनेक स्थानों से प्रकाशित हुआ है । मद्रास में सम्पूर्ण ग्रन्थ के हस्तलेख उपलब्ध हुए । इसके 10 सर्ग बम्बई से 1907 ई. में नन्दरगीकर के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुए। 15. रामचरित गायकवाड़, ओरियण्टल सीरीज में प्रकाशित, संख्या 46. 1930 ई. 16. काव्यमाला (संख्या 11) में प्रकाशित । 17. मिथिला विद्यापीठ द्वारा 1956 ई. में प्रकाशित । 18. सहृदय संस्कृत जर्नल के 17-18 भाग में प्रकाशित । 19. काव्य माला सीरीज में 76वाँ प्रकाशन । 20. मैसूर से प्रकाशित हुआ है ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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