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गीतगङ्गाधर, गीतगोपाल प्रभृति अनेक काव्य लिखे गये । पण्डित राज जगन्नाथ ने व्याकरण एवं साहित्य से सम्बद्ध 13 रचनाएँ प्रस्तुत की हैं - इनमें पाँच लघ गीतिकाव्य हैं -
सुधालहरी (30पद्य), अमृतलहरी (11पद्य), करुण लहरी (60 पद्य) लक्ष्मी लहरी (41 पद्य) तथा गंगालहरी । इनके भामिनी विलास में मुक्तक गीतात्मक पद्यों का संग्रह है - इसमें (4) चार विलास हैं - प्रास्ताविक विलास, शृङ्गार विलास, करुण विलास और शान्त विलास, । इस रचना में पण्डितराज ने अपनी अनुभूतियों को कोमल कान्तपदावली से सुसज्जित किया है।
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य गीतिकाव्य भी कवियों-विशेषकर जैन एवं बौद्ध कवियों ने लिखकर इस परम्परा को समुन्नत किया है ।
स्तोत्रकाव्य - स्तुति परक साहित्य का उद्गम वेद हैं । ऋग्वेद के पश्चात् गीता पुराण, अध्यात्म रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में भक्तिपूर्वक की गई स्तुतियों से स्तोत्रकाव्य की परम्परा पुष्ट होती गयी । पुष्पदत्त आचार्य ने शिवमहिम्न स्तोत्र" शिखरिणी छन्दों में निबद्ध कियां । मयूर भट्ट ने सूरु की स्तुति में "सूर्यशतक" बनाकर कुष्ठ रोग से निवृत्ति प्राप्त की । इसी समय बाणभट्ट ने "चण्डी शतक" स्तोत्र" द्वारा दुर्गा की आराधना स्रग्धरा छंदों में की । शंकराचार्य ने उपास्य देवों शिव, गणपति, विष्णु, हनुमान, शक्ति आदि की मनोहर स्तुतियाँ विरचित की हैं सौन्दर्य लहरी, श्रीकृष्णाष्टक, आनन्द लहरी इनके ग्रन्थ हैं । कुलशेखर ने "मुकुन्दमौला स्तोत्र" में विष्णु की स्तुति 34 पक्षों में की है । यामुनाचार्य कृत "आलबन्दार स्तोत्र"65 पद्यों में आबद्ध है । तत्पश्चात् लीलाशक ने "कृष्ण कर्णामृत" स्तोत्र काव्य के 310 पद्यों में श्री कृष्ण की स्तुति की है। श्री रूप गोस्वामी ने अपने अनेक स्तुतिपद्यों को "स्तवमाला में सङ्ग्रहीत किया है । कुछ अन्य स्तोत्र काव्यों के अतिरिक्त 17वीं शती में वेंकटाध्वरि ने "लक्ष्मी सहस्र" नामक स्तोत्रग्रंथ एक हजार पद्यों में विरचित किया । इसमें लक्ष्मी की स्तुति की गई है । कुछ विद्वान इस ग्रन्थ को एक ही रात में बनायी गई रचना मानते हैं? मधुसूदन सरस्वती माँ ने विष्णु के स्वरूप की अभिव्यञ्जना "आनन्द मन्दाकिनी स्तोत्र में की है । इसमें 102 पद्य हैं। पण्डितराज जगन्नाथ के करुणा, गङ्गा, अमृत, लक्ष्मी, सुधा लहरी आदि ग्रन्थ स्तोत्र काव्य के श्रेष्ठ ग्रन्थ है । शैव स्तोत्रों की रचना भी भक्ति भाव पर आधारित पद्यों के द्वारा की गई एवं 9वीं शती में उत्पाद् देव ने "शिवस्तोत्रावली' में 21 स्तोत्रों का संग्रह किया है । जगद्ववर भट्ट ने "स्तुति कुसुमाञ्जलि की रचना 14वीं शती में की। इसमें 38 स्तोत्र हैं तथा पद्यों की संख्या 1425 है। गोकुलनाथ, लक्ष्मणाचार्य, शिवदास व्यास, नारायण पण्डित, पृथ्वीपति सूरि, डॉ. पुत्तुलाल शुक्ल आदि साहित्यकारों ने भगवान् शिव की आराधना. को ही अपने-अपने स्तोत्र के काव्यों का मूलाधार बनाया। जैन स्तोत्रों की विपुलता से संस्कृत साहित्य उपकृत हुआ है । काव्यमाला के सप्तम गुच्छक में 23 जैन स्तोत्रों का सङ्कलन है, जिनमें मानतुङ्गाचार्य कृत "भक्तामर स्तोत्र" महत्त्वपूर्ण है । इसमें तीर्थङ्कर ऋषभदेव की स्तुति की गई है । सिद्धसेन दिवाकर का "कल्याणमन्दिर स्तोत्र" 44 पद्यों में निबद्ध है । श्री वादिराज का "एकीभाव स्तोत्र" भी अन्यतम ग्रन्थ है। श्री जम्बू कवि के "जिनशतक' में 100 पद्य हैं । पं. जवाहर शास्त्री कृत "पद्यप्रभस्तवनम्" 25 पद्यों में निबद्ध षष्ठ तीर्थङ्कर की स्तुति प्रस्तुत करता है । स्तुतिपरक ग्रन्थों की रचना वर्तमान काल में निरन्तर हो रही है - आचार्य विद्यासागर जी महाराज तथा अन्य साहित्यकारों की रचनाएँ इसी दिशा की ओर किया गया प्रयास है ।