SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 13 के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं । ऋतुसंहार और मेघदूत उनके द्वारा विरचित श्रेष्ठ गीतिकाव्य हैं । ऋतुसंहार के 6 सर्गों में ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर एवं वसन्त इन 6 ऋतुओं का अत्यन्त आकर्षक वर्णन है । मेघदूत - दो भागों में विभक्त 115 पद्यों में निबद्ध रचना है । मेघदूत की 50 से अधिक टीकाएँ हैं किन्तु मल्लिनाथ की टीका सर्वाधिक प्रामाणिक मानी गयी है । मेघदूत में कुबेर द्वारा अपने किङ्कर (दास) एक यक्ष को किसी अपराध के आरोप में एक वर्ष तक मृत्यु लोक में रहने के शाप का वर्णन है । अपनी प्रियतमा से वियुक्त होने पर तीव्र वेदना से आहत वह यक्ष मेघ को दूत बनाकर सन्देश भेजता है । यह एक विरहगीत है । इस काव्य से प्रभावित होकर परवर्ती कवियों ने दूतकाव्य की परम्परा ही स्थापित कर दी, जिन्हें सन्देश काव्य भी कहते हैं" इस परम्परा की रचनाओं में धोयी कवि का पवनदूत, जम्बूकवि का चन्द्रदूत" विक्रमकवि कृत नेमिदूत" वामन भट्ट बाण कृत हंससन्देश, विष्णुत्राता कृत कोश सन्देश एवं रूपगोस्वामी का हंसदूत 2 अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दूत काव्य है । हमारे साहित्य में उद्धवदूत, मनोदूत, इन्दुदूत, पदाङ्कदूत आदि रचनाएँ भी इसी शैली एवं भाव पर विरचित हैं । इसके पश्चात् भर्तृहरि के तीन शतक गीतिकाव्य के अद्वितीय ग्रंथ हैं- नीतिशतक, शृङ्गारशतक, 'वैराग्य- शतक । प्रत्येक रचना में जीवन के विविध पक्षों का गहन अनुशीलन मिलता है । नीतिशतक में विद्या, साहस, उदारता, परोपकार जैसी उदार वृत्तियों सुकुमार पदावली में प्रस्तुत हैं, शृङ्गार शतक नारी दृश्य के मर्मज्ञ भर्तृहरि ने नारी सौन्दर्य, भोग विलास, नखशिख सौन्दर्य तथा नारी स्वभाव का विवेचन किया है। वैराग्य शतक में निरासक्ति एवं वैराग्य की उपयोगिता निदर्शित की है । इसके पश्चात् "अमलक शतक" की रचना 7वीं शती में हुई। इस ग्रन्थ के भिन्न-भिन्न संस्करणों में 90 से 115 श्लोक मिलते हैं । इसमें भाव और रस का मनोहर विवेचन हुआ । यह शृङ्गार रस प्रधान रचना है । भल्लट भी संस्कृत गीतिकाव्य के प्रसिद्ध कवि है । " भल्लटशतक” मुक्तकपद्यों का संग्रह इनकी अन्योक्ति प्रधान रचना है। बिल्हण ने 11वीं शताब्दी में" चौरपञ्चाशिका" नामक लघु गीतिकाव्य 50 पद्यों में निबद्ध किया । इसमें कवि के राजकुमारी से प्रणय और परिणय का काव्य रूप में वर्णन किया गया है । मेघदूत के अनुकरण पर धोयी कवि कृत " पवन दूत" में 104 पद्य हैं । इसमें राजा लक्ष्मण सेन द्वारा अपनी प्रेमिका कुवलयमती के पास पवन द्वारा सन्देश भेजा गया है । घटकर्पर विक्रमादित्य के नवरत्नों में प्रतिष्ठित थे - आपने " घटकर्पट " नामक लघुकाव्य 22 पद्यों में निबद्ध किया । इसमें यमकालङ्कार का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है । तथा एक विरहिणी द्वारा अपने दूरस्थ पति के पास प्रणय सन्देश भेजने का भी वर्णन हुआ है । “हाल” कवि द्वारा विरचित गाथासप्तशती प्राकृत में गीतियुक्त पद्यों की अनुपम कृति है । इसमें सात सौ गाथाओं (आर्याछन्दों) का सङ्कलन है । ये शृङ्गार से सनी अत्यन्त सुन्दर और रस, भाव पेशल है 54 यह रचना ग्राम्य जीवन, प्राकृतिक सौन्दर्य, दाम्पत्य जीवन एवं प्रणयात्मक भावों से ओत-प्रोत है। इसी आदर्श पर गोवर्धनाचार्य ने "आर्यासप्तशती' की रचना की । इसमें आर्याछन्दोबद्ध 700 पद्य शृङ्गार रस से परिपूर्ण हैं । ये 12वीं शती में जयदेव के समकालीन हुए" गोवर्धनाचार्य शृङ्गार रस के आचार्य माने जाते हैं । जयदेव ने भी 12 सर्गों में " गीतगोविन्द " काव्य का प्रणयन किया । इसमें श्रीकृष्ण की ललित क्रीड़ाओं एवं राधा-कृष्ण के प्रणय का मार्मिक विवेचन हुआ है - संयोग एवं वियोग के अनेक चित्र अङ्कित हैं यह रचना पद लालित्य, संगीतात्मकता वाद सौन्दर्य एवं कोमल कान्त पदावली के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । गीतगोविन्द के अनुकरण पर अभिनव गीतगोविन्द, गीत राघव, " 1 I 1
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy