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उक्त पद्य का हिन्दी पद्यानुवाद भी मन्दाक्रान्तावृत्त में निबद्ध है मांगू भिक्षा घर पर चलो नाथ ! हो ओ दयालु, क्यों होते हो मुझ पर प्रभो ! व्यर्थ में आप कष्ट । सींचो सींचो विपुल करुणा- धार से स्वान्त मेरा, सोचो - सोचो गुणगणपते ! आपका मंजु देह ॥ दीक्षा के है नहिं यह प्रभो ! योग्य, सौख्य प्रसेव्य, छोड़ो - छोड़ो तपकरण की भावना को, पधारो, जल्दी-जल्दी मम नगर में है जहाँ हर्म्य माला, शंभूमाल स्थिर शशि प्रभा से सदा ॥' तोटक छन्द का लक्षण है वद तोटकमब्धिसंकारयुतम् " अर्थात् तोटक छन्द के प्रत्येक पाद में चार सगण होते हैं । तथा प्रत्येक पाद में 30 मात्राएँ होती हैं, जिनमें 16 और 14 पर यति होती हैं । उदाहरण
नाथ ! आपको छूकर आयी वायु उसे जब छूती है, तो वह अति प्रसन्न हो करके उसमें, तुम्हें ढूंढती है । पर वह मुग्धा नाथ ! नहीं जब तुम्हें वहाँ पर पाती है । तो वह द्विगुणित मनस्ताप से हाय ! दग्ध हो जाती है । 12 इस प्रकार उक्त छन्दों में निबद्ध वचनदूतम् श्रेष्ठ रचना है ।
एक अन्य पद्य भी प्ररूपित है
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अलङ्कारच्छटा
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प्रस्तुत "वचनदूतम्" काव्य में शब्दालङ्कारों और अर्थालङ्कारों का मणिकाञ्चन, समन्वय मिलता है । वचनदूतम् में अनुप्रास अलङ्कार पदे पदे विद्यमान है - " गन्तव्या ते यदुकुलपते । भामिनीनां विलासै, सम्भृता दारिकेयम् 113
र्हास्यैर्लास्यैिर्मुनिवरचयैः
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शान्ते कान्ते निवस निलये नाथ ! सार्धं मयैव, धर्म्यध्यानं त्वमिह भज ते सर्वचिन्तां विमुच्य (114
वचनदूत में यत्र-तत्र यमकालङ्कार आया है । प्रस्तुत उदाहरण में यमक के अलावा पुनरुक्ति प्रकाश अलङ्कार के भी दर्शन होते हैं -
'श्यामा श्यामा विरहविफला दुःखदावाग्निदग्धा, तन्वी तन्वी शिथिलगमना मन्द - मन्द प्रजल्पा (415
सखियों के द्वारा नायिका राजुल की वियोगजन्य स्थिति की व्याख्या नायक ( नेमि ) के समक्ष की गयी है - यद्यपि वह यौवनवती (श्यामा) है, फिर भी विरह से विकल और दुःखरूपी दावानल से दग्ध होने के कारण श्यामा (काली) हो गयी है । उसकी शारीरिक "हालत अत्यंत कमजोर है । इस कारण वह ठीक से चल नहीं पाती और बहुत धीमे स्वर में बोलती है । यहाँ श्यामा-श्यामा में यमक अलंकार आ गया है, किन्तु एक से अधिक बार शब्द ज्यों के त्यों आ गये हैं, इसलिए पुनरुक्ति प्रकाशनामक अलङ्कार भी हो जाता है।
वचनदूतम् में उपमा अलङ्कार अत्यन्त समृद्धि के साथ प्रयुक्त हुआ है। वचनदूतम् पदेपदे उपमाएँ आयी हैं- जैसे -