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________________ 255 प्ररूपित है - जिसमें कवि ने रोहण पर्वत से शोक त्याग करने और घन गर्जन से रत्नों की प्राप्ति होने की सम्भावना व्यक्त की है - मा कुरु । मा कुरु शोकं रत्नसमूह व्ययेच हे रोहणः । झगिति पयोधर रावो दास्यति रत्नानि ते बहुतराः ।।" यहाँ उपमेय रोहण भूधर के शोक को दूर करने उपमान रूप पयोधर से रत्न प्राप्ति की सम्भावना उत्प्रेक्षा का सङ्केत करती है । धर्म कुसुमोद्यान के आठ पद्य अन्योक्ति अलङ्कार से सुसज्जित हैं और प्रभावित करते हैं । इनमें पर्वत, मेघ, सागर, चन्दन, खजूर को सम्बोधित करते हुए भी अन्य अर्थ का आभास होता है - जिससे कहीं-कहीं श्लेष की सलक भी मिल जाती है एक उदाहरण निरूपित है - किमिति कठोरं गजसि वर्षसि सलिलस्य शीकरं नैव । मा मा वर्षाम्भोधर । त्यजतुकठोरं तु गर्जनं सद्यः ॥100 अर्थात् जल से रिक्त हे मेघः तुम व्यर्थ गर्जन, क्यों कर रहे हो ? वर्षा नहीं परन्तु कठोर गर्जना को छोड़ दो । अम्भोधर (मेघनाथ) रावण के पुत्र के पक्ष में द्वितीय गूढ़ अर्थ अन्योक्ति की सिद्धि करता है। अर्थान्तरन्यास की अभिव्यञ्जना कुछ पद्यों में है एक पद्य द्रष्टव्य है - संसारसिन्धुतरणे सत्यं पोतायते चिरं पुंसाम् । सत्येन विना लोका ध्रुवं बुडन्तीह भवसिन्धौ 01 ___ अर्थात् संसार समुद्र के पार होने के लिए सत्य जहाज के समान है । मनुष्य सत्य के बिना भव सागर में डूब जाता है । यहाँ सामान्य कथन का विशेष कथन से समर्थन किये जाने के कारण अर्थान्तरन्यास की प्रतिष्ठा हुई है। इस प्रकार उक्त उदाहरणों के द्वारा विवेच्य ग्रन्थ में आलङ्कारिक छटा का आकलन किया जा सकता है । . शैलीगत विवेचन डॉ. पं. पन्नालाल साहित्याचार्य की काव्य-कुशलता अनुपम और स्तुत्य है । बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध कालीन साहित्यकारों में गणमान्य भाषा साहित्याचार्य जी सरस, सरल, बोधगम्य, भाषा के द्वारा मानवमात्र धरातल से सम्बद्ध हैं तथा जनसामान्य की श्रद्धा के पात्र हैं । "धर्मकुसुमोद्यान" में ही सरल, बोधगम्य प्रसादगुण पूर्ण भाषा और शैली ने प्रत्येक धर्म प्रेमी मानव को प्रभावित किया है । आपकी अनुप्रासमयी शब्द रचना और पदावली निःसन्देह सराहनीय है - मानव मन के अन्तरंग भावों का स्पर्श करने वाली शुद्ध, परिष्कृत सरल संस्कृत "धर्मकुसुमोद्यान" में प्रतिफुल्लित हुई है । क्षमा,
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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