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कर्मो
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रक्तलोचनयुग्मकः । रोषविधायकः 11.
"क्रोध आत्म-प्रशंसनोद्युक्तो वागा उत्तालताल संलीनश्चरण स्फाल नोद्यतः । क्रोधोऽवस्थान्तरो जीवस्योच्यते परमात्मभिः । 368
पञ्चम मयूख में आकाश द्रव्य की विस्तृत विवृत्ति में " अद्भुत रस" आश्चर्य भाव को सुदृढ़ कर रहा है
सर्वतो बहु विस्तृतम् । प्रदेशकम् ॥
यत्रान्तरीक्षमेवास्ते
अलोक व्योम सम्प्रोक्तं तदनन्तत लोकाम्बरस्य सम्प्रोक्तोऽवगाहः अलोक गगन स्याप्यवगा हो जिन
षष्ठ मयूख में विभिन्न आरमणों का वीभत्स और भयानक रस में विवेचन है। सप्तम मयूख में बन्ध तत्त्व का निदर्शन शान्तरस में हुआ है । अष्टम मयूख में संवर तत्त्व शान्तरस का केन्द्र है ।
स उपग्रहः,
सम्मतः ॥ 369
नवम और दशम मयूख में भी शान्तरस की प्रधानता है । -
क
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि धर्मपरक इस दार्शनिक ग्रन्थ | में शान्तरस का प्राधान्य है किन्तु प्रसंगानुकूल अन्य रसों की अवस्थिति भी निदर्शनीय है।
छन्द योजना
" सम्यक्त्व चिन्तामणि" में उन्नीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। दार्शनिक विषयों (तत्वों) को उपयोगी बनाया गया है - इसमें मालिनी, स्वागता, उपजाति, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, आर्या, अनुष्टुप् प्रमदानन, वसन्ततिलका, शालिनी, शिकारिणी, रथोद्धता, गीतिका शशिकला, भुजङ्गप्रयात, द्रुतविलम्बित, वंशस्थ, स्त्रग्धरा और शार्दूलविक्रीडित छन्द प्रयुक्त हैं।
रचनाकार ने छन्दों वैविध्य के माध्यम से प्रगाढ़ पांडित्यपूर्ण गम्भीर दार्शनिक विषयों को आबद्ध किया है और विषय को रोचकता प्रदान की है । कतिपय प्रमुख छन्दों के उदाहरण अधोलिखित हैं
ग्रन्थ का प्रथम पद्य "मालिनी छन्द" में निबद्ध है
वरिष्ठः,
"जयति जन सुबन्धश्चिच्चमत्कार नन्द्यः शम सुख-भर-कन्दो उपास्त कर्मरि वृन्दः । निखिल मुनि गरिष्ठः कीर्ति सत्ता सकल सुरपूज्य श्री जिनो वासुपूज्यः इस ग्रन्थ में प्रसिद्ध छन्द " उपजाति" का बाहुल्य है । उदाहरणार्थ एक पद्य प्रस्तुत है -
11370
"काले कलौ येऽत्र प्रशान्तरूपं सुखस्वभावं मुनिमाननीयम् । सम्यक्त्व भावं दधति स्वरूपं, नमामि तान् भक्तियुतः समस्तान् ॥ 371
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यह इन्द्र वज्रा और उपेन्द्र वज्रा के पादों केमेल से निर्मित उपजाति छन्द है । " आर्या" छन्द का प्रचुर प्रयोग किया गया है।
स जयति जिनपति वीरो वीरः कर्मारि सैन्य संदलने । हीरा निखिला जनानां धीरो वर मोक्ष लाभाय ॥