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________________ 246 भुजङ्गप्रयात छन्द भी कहीं-कहीं प्रयुक्त हुआ है। रचयित्री के प्रिय छन्द अनुष्टुप का एक उदाहरण प्रस्तुत है - "महाव्रतधरो धीरो, गुप्तिसमिति नायकः । आवश्यक क्रियासक्तो, भक्तेर्जीवनदायकः॥5 अलङ्कार इनकी रचनाओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलङ्कारों का निदर्शन है । भाषा शैली आर्यिका श्री की सभी रचनाएँ वैदर्भी रीति और प्रसादगुण प्रधान है। इनमें सरल, सरस संस्कृत शब्दों का चयन करके रचयित्री ने भावों को बोधगम्यता प्रदान की है और आचार्यों के प्रति अपनी श्रद्धाञ्जलि प्रस्तुत की है । इनकी कृतियों में विशेषणों के विविध प्रयोग परिलक्षित होते हैं । जैसे - मुनीन्द्र, यतीन्द्र, दिगम्वस्त्रधारी, गुणाब्धे । महाधीर वीर, मुनिचन्द्र, मुनिसूर्य, विज्ञानी, सहिष्णु, महाध्यानिन, सुधीर आदि । "स जयतु गुरुवर्यः" रचना में आचार्य धर्मसागर मुनि महाराज का सम्पूर्ण जीवन परिचय दर्शन और दिनचर्या का विवेचन किया है तथा मालिनी छन्द का (अन्तिम पद्य में) प्रयोग करते हुए रचना समाप्त की है ।। इस प्रकार आर्यिका ज्ञानमती जी बीसवीं शताब्दी की विदुषी, रचयित्री जैन साध्वी | है । उनका रचना संसार अत्यन्त व्यापक है । डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य की रचनाओं का साहित्यक एवं शैलीगत अध्ययन सम्यक्त्व चिन्तामणि - रसाभिव्यक्ति - "सम्यक्त्व चिन्तामणि" का प्रथम मयूख शान्तरस प्रधान है 6 सम्यग्दर्शन का माहात्म्य और मोक्ष का विवेचन पढ़कर सहृदय पाठक की मनोवृत्ति में निर्वेद जाग्रत हो जाता है, वैराग्य भावना पुष्ट होती है । द्वितीय मयूख में भी शान्तरस की प्रधानता है । तृतीय मयूख में विभिन्न गतियों के विवेचन में भयानक और वीभत्स रसों की उपलब्धि होती है । यथा - वाहयन्ति ततो यानं भूरिभार भृतं चिरात् । छेदयन्ति पुनः केचिन्नासिकां तर्क संचयैः । क्वचित्प्रदीप्त हव्याश कुण्डे पातयन्ति हा । ततः कटुक तैलेन निषिच्यन्ति कलेवरम् 167 इसमें नरकगति के घृणित और भयोत्पादक कार्यों के कारण जुगुप्सा और भय नामक स्थायी भाव विभाव अनुभाव और व्यभिचारी भावों से पुष्ट होकर रस निष्पत्ति कर रहे हैं। चतुर्थ मयूख में मानवशरीर की नियामक इन्द्रियों का विवेचन शान्त रस की निष्पत्ति करता है। ___क्रोध नामक स्थायी भाव को जाग्रत करने वाला "रौद्र रस" अधोलिखित पद्य में परिलक्षित है - BARomammDAR
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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