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कष्ट बढ़ते जाते हैं । इसलिए दुःखदायी मद्य का सेवन त्याग देना ही कल्याणकारी है । इस प्रकार विवेच्य श्रावकाचार में आद्योपान्त वैदर्भी प्रधान प्रश्नोत्तर शैली विद्यमान है ।
इसके साथ ही प्रस्तुत ग्रन्थ में अभिधाशब्द शक्ति प्रमुखता के साथ प्रयुक्त है लक्षणा व्यञ्जना के दर्शन नहीं होते । इस कृति में प्रसादगुण, वैदर्भी रीति एवं अभिधा शक्ति (वृत्ति) ही आद्योपान्त दृष्टिगोचर होती है ।
सुवर्ण सूत्रम्
रस: "सुवर्णसूत्रम्" चारपद्यों में निबद्ध विश्वधर्म के स्वरूप को प्रतिबिम्बित करती है ।। इसके सभी पद्यों में शान्त रस विद्यमान है - . विश्व में शांति की कामना करते हुए मुनि कुन्थुसागर जी धर्म की उपयोगिता प्रतिपादित
कर रहे हैं -
परम्पराचार्य विभोः कृपाब्धेः, स्वर्मोक्ष दातुश्च सुधर्म शान्तेः । शिष्यस्य चास्यास्ति सदेति भावः, सद्ग्रन्थकर्तुर्वर कुन्थुनाम्नः ।।३००
इस प्रकार सुवर्ण सूत्रम् शान्ति पर आधारित कृति होने के कारण इसमें शान्त रस की प्रस्तुति हुई है।
छन्द .. इस लघु रचना के सभी 4 श्लोक उपजाति छन्द में निबद्ध किये गये हैं ।
अलङ्कार सुवर्णसूत्रम् में अनुप्रास और उपमा अलंकार दृष्टिगोचर होते हैं ।
भाषा शैली आचार्य प्रवर कुन्थुसागर महाराज की यह लघु रचना प्रसादगुणपूर्ण सरल, सरस भावों की सजीव अभिव्यक्ति कराती है । इसमें विश्वकल्याणकारी जैनधर्म के स्वरूप को सरल संस्कृत शब्दावली में अभिव्यंजित किया है - भावों में सजीवता है -
वनस्य बुद्धेः समयस्य शक्तेर्नियोजनं प्राणिहिते सदैव ।
स जैनधर्मः सुखदोऽसुशान्ति ज्ञात्वेति पूर्वोक्त विधिविधेयः॥1 इस प्रकार भावों को सरल, भाषा में व्यक्त किया गया है । वेदी रीति आद्योपान्त विद्यमान है । यह ग्रन्थ कुन्थुसागर के प्रवचनों पर आधारित रचना है ।
आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी की रचनाओं का साहित्यिक
- एवं शैलीगत अध्ययन ___ आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माता जी की रचनाएँ साहित्यिक तत्त्वों से ओत-प्रोत उत्कृष्ट काव्य का प्रतिनिधित्व करती है।
रसाभिव्यक्ति ___ आर्यिका श्री ने अपनी सभी रचनाएँ मुनियों के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित की हैं- अतः प्रत्येक कृति में आद्योपान्त शान्तरस विद्यमान है । उदाहरणार्थ एक पद्य प्रेक्षणीय है