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| 2371 संसर्गतो देहमलीनस्य, शुद्धः पदार्थोऽपि भवेदशुद्धः ।
वस्त्रानपानं च विलेपनादिरत्यन्तनिन्द्यञ्च विर्वजनीयः। 18 इस प्रकार शान्तिसुधासिन्धु में अन्य रसों की उपलब्धि भी होती है किन्तु प्रमुख रूप से शान्तरस ही अभिव्यञ्जित है।
छन्दयोजना "शान्तिसुधा सिन्धु" ग्रन्थ विविध छन्दों में निबद्ध रचना है । इसके 163 श्लोकों में अनुष्टुप्, 348 पद्यों में उपजाति, इन्द्रवज्रा एवं उपेन्द्रवज्रा तथा 20 पद्यों में वसन्ततिलका छन्द परिलक्षित होता है ।
वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध एक पद्य प्रस्तुत है - संसार ताप शम का निजामात्म निष्ठाः संसार दुःख सुखदाः परमापवित्राः ॥20
आलङ्कारिक छटा शान्ति सुधा सिन्धु में प्रायः सभी प्रसिद्ध अलंकारों की प्रस्तुति है । इस काव्य में प्रयुक्त अलंकार काव्य सौन्दर्य को परिष्कृत किये हुए हैं ।
इस कृति में अनुप्रास अलंकार प्रचुरता के साथ प्रयुक्त हुआ है । कतिपय उदाहरणों से इस तथ्य की पुष्टि हो जाती है -
मातापि मान्या चतुरः पितापि । स्वप्तम् सुशीला प्रिय बान्धवोऽपि ॥31 वादन्न चानि सततं स्वपिति स्वपन्न,
कुर्वन् करोति न भवन् भवति ह्यहो न ॥322 अनुप्रास के अतिरिक्त विरोधाभास, स्वभावोक्ति प्रतीप, व्यतिरेक, दृष्टान्त, उपमा रूपक, उत्प्रेक्षा, अपन्हनुति, आदि को विशेष स्थान प्राप्त हुआ है । किन्तु श्लेष, यमक का सर्वथा अभाव ही है । शान्तिसुधा सिन्धु ग्रन्थ में अनेक अवसर विरोधाभास अलङ्कार सहित उपस्थित हैं - विरोधाभास अलङ्कार के उदाहरण अधोलिखित पद्यों में हैं -
ग्रस्तोस्ति यः कामखलेन जीवः स्वानन्द साम्राज्य विनाशकेन । दक्षः स कुण्ठश्चचतुरोपि मूर्खः कोपी क्षमान् भयवांश्च शूरः ॥ ज्येष्ठः कनिष्ठः सृजनोपि दुष्टस्तीव्रोपि मन्दः प्रबलोप्यशक्तः । नीचो कुलीनः विवशोवशः स्यादबुदध्वेति तत्त्याग विधिविधेयः ।।24
कामदेव के वशीभूत पुरुष चतुर होने पर मूर्ख तीव्र बुद्धि भी मन्दबुद्धि, क्षमावान होने पर भी क्रोधी, शूरवीर भी भयभीत, बड़ा भी छोटा सज्जन भी दुष्ट एवं कुलीन भी नीच कहलाता है । आशय यह कि यहाँ परस्पर विरोधी गुणों की प्रतीति है, जिससे विरोधाभास दृष्टिगोचर होता है । इसी प्रकार निरधमी को सत्कार्य करने पर भी पापी, चतुर होने पर मूर्ख, धनी होने पर दरिद्र और सज्जन होने पर दुष्ट कहने से विरोधाभास की प्रतीत होती है । -
निरुद्यमी स्यान्नरजन्म लब्ध्वा सत्कर्मकार्ये सुखदे सदा यः ।।
स एव पापी चतुरोपि मूर्खः श्रीमान् दरिद्रः सुजनोऽपि दुष्टः ।25। किन्तु उपर्युक्त उदाहरण में विरोधाभास का (समाधान) परिहार किया गया है एकएक ही अवगुण के कारण इन पुरुषों के समस्त सद्गुण लुप्त हो गये हैं ।