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वर्णन करने में कौन समर्थ है ? अर्थात् कोई नहीं । आप दिगम्बर हैं और सत्य एवं परिग्रह के द्वारा विश्रुत हैं । आचार्य श्री ने हिंसा, स्तेय, कुशील के घोर विरोधी के रूप में प्रतिपादित भी किया है और उनके कौशल की सराहना की है । अन्तिम पद्य में रचयिता ने आचार्य श्री को आराध्य के रूप में चित्रित किया है और उनकी शरण में रहने की तीव्र अभिलाषा व्यक्त की है - एक सद्भक्त, सेवक के रूप में हम आपका ध्यान करते हैं और आपके श्रेष्ठ गुणों को प्राप्त करने के लिये याचना करते हैं । हे गुरु आप हमें अपनी शरण में स्वीकार कीजिए । मैं आपके पवित्र चरणों की निरन्तर वन्दना करता हूँ।
प्रस्तत स्तोत्र संस्कृत के साहित्यिक स्वरूप को चित्रित करता है । इसमें प्रसाद माधुर्य गुणों का विवेचन है । भाषा की प्राञ्जलता और सरसता मुखरित हुई है । शैली की दृष्टि से ये पद्य सुललित और प्रभावोत्पादक है । वैदर्भी रीति की प्रमुखता अभिव्यंजित होती हैं । भाषा शैली में साहित्यिक संस्कृत का सौंदर्य दृष्टिगोचर होता है । प्रचुरता परिलक्षित हो रही है । शान्तरस की प्रधानता है, अन्य रसों की स्थिति नगण्य है । शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों के समन्वय से प्रस्तुत कविता को अलङ्कत किया है - अनुप्रास, रूपक, अर्थान्तरन्यास आदि अलङ्कारों की उपस्थिति हैं । साहित्य के सुविख्यात शार्दूल विक्रीडित छन्द में ये पद्य निबद्ध हैं।
पं. गोविन्द दास जी 'कोठिया' परिचय - आपका का जन्म टीकमगढ़ जिले के अहार अतिशय क्षेत्र में संवत् 1976 के वैसाख मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन हुआ था । आपके पिता श्री शिवलाल जी 'चौधरी' पद से विभूषित थे । आरभिक शिक्षा एवं न्यायतीर्थ, शास्त्री और व्याकरण मध्यमा परीक्षाएँ आपने वीर दि. जैन विद्यालय, पपौरा से उत्तीर्ण की थी । संस्कृत विषय से एम. ए. करने के पश्चात् आयुर्वेदाचार्य, साहित्याचार्य परीक्षाएँ भी आपने उत्तीर्ण की हैं।
अध्ययन के पश्चात आपने अध्यापन कार्य किया । अहार, दोहद, वहरामघाट पुनः अहार और इन्दौर आपकी कर्म भूमियाँ रहीं है । मुरेना विद्यालय में प्रधानाध्यापक रहने के पश्चात् शांतिनाथ विद्यालय अहार के आप प्रधानाध्यापक हैं ।
रचनाएँ - ज्ञानमाल पच्चीसी, अहार वैभव, अमर सन्देश, अहार दर्शन, प्राचीन शिल्प लेख आदि आपकी मौलिक रचनाएँ हैं । संग्रहालय की परिचयात्मक सूची, चन्द्रप्रभ चरित 4 सर्ग (हिन्दी, संस्कृत टीका), धर्मशर्माभ्युदय-6 सर्ग (हिन्दी-संस्कृत टीका) अहार का इतिहास और राङ्गा का चांदी (नाटक) आपकी रचनाएं प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं ।
इन रचनाओं के अतिरिक्त आपकी एक स्फुट रचना है - अहार तीर्थ -स्तोत्र प्रस्तुत रचना में 9 श्लोक हैं । प्रथम आठ श्लोकों में अहार क्षेत्र का परिचय है तथा अन्तिम श्लोक में रचनाकार ने अपना नामोल्लेख किया है । अहार क्षेत्र के मदनेश सागर को विविध पुष्पों से और पक्षियों से विभूषित बताकर कवि ने लिखा है -
फुल्लैः सुपुष्पैर्विविधैर्विहंगैर्मह्यांप्रसिद्धो मदनेश नाम्नः । .
सरोवरा यत्र विभान्ति रम्या अहारतीर्थं तदहं नमामि ॥ - अन्य श्लोकों में शान्तिनाथ प्रतिमा, उसके निर्माता तथा बानपुर के सहस्र कूट चैत्यालय का वर्णन किया गया है ।