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________________ 158 मुख्तार जी का जीवन सङ्घर्ष पूर्ण पारिवारिक आपदाओं से भरा हुआ था । मुख्तार दम्पत्ति को अपना आठ वर्षीय प्रथम पुत्री सन्मतिकुमारी की प्लेग बीमारी के कारण हुई दुःखद मृत्यु का कष्ट झेलना पड़ा । द्वितीय पुत्री का जन्म 1917 ई. में हुआ, किन्तु तीन माह के पश्चात् ही जीवन-साङ्गिनी आपका साथ छोड़ चल बसीं । पत्नी वियोम के तीन वर्ष पश्चात् मुख्तार जी एक मात्र सहारा भी मोतीझिरा की बीमारी का शिकार होकर अलविदा कर गयी । मुख्तार जी उक्त विपदाओं को प्रकृति की देन मानकर एक सच्चे कर्मयोगी की भांति साहित्य-साधना से विचलित नहीं हुए बल्कि पूरे उत्साह से दत्तचित्त रहे । आपने 21 अप्रेल 1929 में दिल्ली में समन्तभद्राश्रम की स्थापना की । यहीं से "अनेकान्त" मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया । बाद में यही वीर सेवा मन्दिर में परिवर्तित हो “दिल्ली" से "सरसावा" चला आया जो एक शोध प्रतिष्ठान के रूप में वाङ्मय की विभिन्न शोध वृत्तियों का प्रकाशन और अनुसन्धान करने लगा। ज्ञान-पीठ की स्थापना के पूर्व यही एक ऐसी दिगम्बर संस्था थी । मुख्तार साहब ने अपनी समस्त संपत्ति का ट्रस्ट कर दिया और उस ट्रस्ट से वीर सेवा मन्दिर अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों का संचालन करने लगा। रचनाएँ - आपकी काव्य रचनाओं का संग्रह "युग-भारती" नाम से प्रसिद्ध है। आपकी प्रसिद्ध रचना "मेरी भावना' राष्ट्रीयकविता के रूप में विख्यात है । आपके निबन्धों का संग्रह"युगवीर-निबन्धावली" के नाम से दो खंडो में प्राप्त है । इसमें समाज-सुधारात्मक एवं गवेष्णात्मक निबन्ध है । इसके अलावा "जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश" नामक ग्रन्थ में 32 निबन्ध हैं । ये सामाजिक, राष्ट्रीय, आचारमूलक, भक्तिपरक, दार्शनिक एवं जीवन शोधक निबन्ध हैं । इनमें मुख्तार जी का संपूर्ण व्यक्तित्व उजागर हुआ है । आचार्य समन्द्रभद्र ही प्रायः समस्त कृतियों पर भाष्य लिखे हैं। मुख्तार जी की साहित्यिक गतिविधियों का प्रारम्भ ग्रन्थ परीक्षा और समीक्षा से होता है । "ग्रन्थ-परीक्षा" के दो भागों का प्रकाशन 1916 में हुआ था । वीर शासन की उत्पत्ति और स्थान श्रुतावतार कथा, तत्त्वार्थाधिगम भाष्य और उनके सूत्र, कार्तिकेयानुप्रेक्षा और स्वामिकुमार आदि शोध निबन्ध विशेष उल्लेखनीय हैं । ___ मुख्तार साहब ने स्वयम्भू सतोत्र, युक्त्यनुशासन, देवागम, अध्यात्म रहस्य, तत्त्वानुशासन, समाधितन्त्र, पुरातन जैन वाक्यसूत्री, जैन ग्रन्थ, प्रशस्ति संग्रह (प्रथम भाग) समन्तभद्र भारती प्रभृति ग्रन्थों का संपादन कर महत्त्वपूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखीं, जो अध्येताओं के लिए उपयोगी हैं । एक संपादक एवं पत्रकार के रूप में "जैन-गजट" साप्ताहिक के सम्पादन से आपको प्रसिद्धि मिली। इसके पश्चात् "जैन-हितेषी" का सम्पादन किया। समन्तभद्राश्रम की स्थापना के पश्चात् "अनेकान्त" नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन प्रारम्भ कियायह उस समय की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका थी । इसके अलावा मुख्तार साहब ने अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना भी की । इस प्रकार पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" का व्यक्तित्व बहुआयामी था । पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" द्वारा रचित संस्कृत रचना का अनुशीलन जैनादर्श (जैन गुण दर्पण)९६ आकार - "जैनादर्श" (जैन गुणदर्पण) रचना दस श्लोकों में आबद्ध स्फुट काव्य हैं। नामकरण - प्रस्तुत कृति जैन धर्म के गुणों या आदर्शों पर आधारित होने के कारण "जैनादर्श' नाम को सार्थक करती है ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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