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________________ 151 "यस्याः सुपुत्री सुगुणापि हिन्दी, भाषासु विख्यात् सुराष्ट्रभाषा । यस्या सखी देश-विदेश भाषा, सा संस्कृता केन भवेदनाथा । 73 रचनाकार की कल्पना शक्ति प्रभावशील है - संस्कृत साहित्य का शब्दकोष विशाल राज्य है, काव्यांग सेना है और संस्कृत के सौंदर्य अलंकार हैं । रस इसकी आत्मा है, इन सबसे सम्पन्न यह भाषा दरिद्र कैसे रह सकती है । रचनाकार ने मङ्गल कामना करते हुए वाणी पर्व महोत्सव (सेमीनार) की सफलता की कामना की है और विद्वज्जनों के प्रति आभार व्यक्त किया हैं। पं. दयाचन्द्र जैन साहित्याचार्य जी द्वारा विरचित गुरुवर श्री गोपालदास जी बरैया शताब्दी महोत्सव, देहली में पठित संस्कृत में निबद्ध गौरवगाथा अनुपम स्फुट पद्य रचना है । अपने गुरुवर का प्रारम्भिक जीवन लेखक ने प्रथम छन्द में स्पष्ट करने का प्रयास किया है । मेट्रिक उत्तीर्ण करने के उपरांत रेल्वे विभाग में गुरुजी ने काम किया तथा अजमेर में साहित्य साधना की । तदनन्तर विद्याकेन्द्र, महासभा, परीक्षाबोर्ड आदि के संस्थापक भी बने । गुरु श्री गोपालदास जी में अनुपम सांस्कृतिक गुणों का समावेश था । सामाजिक क्षेत्र में उनकी सेवाएँ बहुचर्चित हैं । मुरेना में संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना करके आपने निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की प्रेरणा दी । राष्ट्र और राज्य के विभिन्न पदों को अलंकृत करते हुए आपने महान कर्मठता एवं निःस्वार्थ सेवा का परिचय दिया । लेखक ने प्रसाद गुणपूर्ण शैली में इसी भाव की सरस अभिव्यक्ति इस प्रकार की है - "राष्ट्र राज्यपदेऽपि तस्य महिमा सेवा प्रभावः श्रुतः । सिन्धीया नृपशासने स नियतो न्यायाधिपो निःस्पृहः । व्यापारस्य सभा सदस्य कुशलः सभ्योऽपि पञ्चायते, मान्यः सर्वहितं सदैव कुरुताद् गोपालदासो गुरुः ॥ गुरु गोपाल दास जी महान व्यक्तित्व के धनी थे । वे सिद्धान्तशास्त्री विद्याभूषण, न्यायवाचस्पूति आदि उपाधियों से अलङ्कत परम श्रद्धेय हैं । जैन विषयों पर उनका चिन्तन गहन और अनुभूति जन्य रहता है । शास्त्रों में गम्भीर वैदग्ध से पूर्ण उनका पाण्डित्य सर्वत्र विश्रुत है । शास्त्रों के वाद-विवाद में उनकी समानता करने में कोई समर्थ नहीं था । साहित्य के क्षेत्र में पाली, संस्कृत, काव्यशास्त्र, तर्कशास्त्र आदि में उनकी ख्याति दिग्दिगन्त में व्याप्त रही है - उनके द्वारा विरचित तीन ग्रन्थ साहित्य की अभिवृद्धि करने के लिए पर्याप्त हैंमीमांसा, निबन्ध, मित्र । गोपाल दास जी का जीवन सदाचारी था, वे "सादा जीवन उच्च विचार" के अनुयायी थे। "येषां जीवनकाल शुद्धचरितं चेता विचारो महान्, व्यापारे वचने च सत्यकथनं ज्ञानोपयोगे क्रमः । पञ्चाणुव्रतधारणं सुचरणं रत्नत्रयाराधनम्, मान्यः सर्वहितं सदैव कुरुताद् गोपालदासो गुरुः"। इस प्रकार अन्त में अपने वक्तव्य के अन्त में गुरुवर को श्रद्धाञ्जलि अर्पित की है। प्रस्तुत स्फुट पद्य रचना में लेखक ने गोपालदास जी के जीवन दर्शन के विभिन्न अंशों का प्रकाशन किया है । पद्य रचना सराहनीय है । शार्दूल विक्रीडित छन्द में लेखक के भाव सुगमता से बोधगम्य बन गये हैं । प्रसाद गुण पूर्ण शैली सहज ही में भावों को सरस बनाकर
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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