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________________ TAGRAM | चतुर्थ अध्याय बीसवीं शताब्दी के मनीषियों द्वारा प्रणीत प्रमुख जैन काव्यों का अनुशीलन इस शोध प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में बीसवीं शताब्दी में साधु-साध्वियों द्वारा प्रणीत प्रमुख जैन काव्यों का अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है । इस चतुर्थ अध्याय में विवेच्य साहित्य की दृष्टि से शोध प्रबन्ध का यह अध्याय तृतीय अध्याय का पूरक ही है । इसमें भी पूर्व अध्याय की भाँति संस्कृत काव्य के सौरभ से दिदिगन्त सुरभित है। इस अध्याय में भी स्पष्ट किया गया है कि रचनाकारों ने जैन दृष्टि का अवलम्बन करके संस्कृत काव्य के उन सभी अङ्गों का सम्वर्धन किया है, जिसमें भगवती वाग्देवी का अक्षय भाण्डार और अधिक श्री समृद्ध हुआ है। काव्य साहित्य की प्रौढ़ता और रचनाधर्मिता की वरिष्ठता को प्रायः दृष्टि पथ में रखकर इस अध्याय में सर्वप्रथम रचनाकार का परिचय, व्यक्तित्व वैदुष्य और उसके रचना संसार का अपेक्षित विश्लेषण किया है । तदुपरान्त उसकी उन जैन रचनाओं को अध्ययन का विषय बनाया है, जिन्होंने संस्कृत काव्य को श्री समृद्ध और विकसित करने में महनीय योगदान किया है। डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य देश के ख्यातिलब्ध विद्वान डॉ. पन्नालाल जी सागर जिले के पारगुवाँ ग्राम में 5 मार्च 1911 में जनमें थे । पिता का नाम गल्लीलाल और माता का नाम जानकी बाई था । संवत् 1972 मे आपकी मां आपको लेकर पारगुवाँ से सागर चली आयी थी । सागर में धार्मिक वातावरण मिला । धार्मिक अभिरुचि जागी । पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी से भी परिचय हुआ। उनके सहयोग से आपके सत्तर्क सुधा तरङ्गिणी दिगम्बर जैन पाठशाला (मोराजी) में निः शुल्क प्रवेश मिला । व्याकरण मध्यमा परीक्षा आपने इसी विद्यालय से उत्तीर्ण की । इसके पश्चात् आपने स्याद्वाद महाविद्यालय में कुछ अध्ययन किया तथा लौटकर पुनः आप सागर आये और मोराजी में ही अध्ययन करने लगे थे । इसी विद्यालय में पूज्य वर्णी जी के सहयोग से ईसवी 1931 में आपकी अध्यापक के रूप में नियुक्ति हुई । आपने 52 वर्ष तक इस विद्यालय की सेवा की । इस सेवा काल में आपको सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई । ईसवी 1936 से तो आपको लोग नाम से कम साहित्याचार्य के नाम से अधिक जानने लगे । ईसवी 1931 में गढ़ाकोटा-निवासी मास्टर काशीराम जी की पुत्री सुन्दरबाई से आपका विवाह हुआ था । प्रकाश, महेश, अशोक, पवन, राकेश, और राजेश -ये छह पुत्र और कमला, कञ्चन तथा शारदा ये तीन पुत्रियां हैं । आलमचन्द्र जी आपके बडे भाई और लटोरेलाल जी मजले भाई थे । भाइयों के बच्चों का लालन-पालन भी आपने बड़े ही सौहार्द भाव से किया है । आपके जीवन में डॉ. रामजी उपाध्याय का भी स्तुत्य सहयोग रहा है। महाकवि
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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