________________
100
आर्यिका सुपार्श्वमती की चौथी रचना आचार्य चन्द्रसागर - स्तुति है । इसमें आठ पद्य हैं ।" जिन्होंने आचार्य शान्तिसागर गुरु के चरण कमलों में सभी सुखों को देने वाली जिनेन्द्रदीक्षा धारण की। जिनके चरणकमलों की राजाधिराज और देव सेवा करते हैं, उन गुरु चन्द्रसागर महाराज की हृदय में आर्यिका सुपार्श्वमती भावना भाती है । पद्य है
यः शान्तिसागरगुरोश्चरणारविन्दे जग्राह सर्वसुखदां हि जिनेन्द्रदीक्षाम् । राजाधिराज सुर- सेवित पाद- पद्मं तं चन्द्रसागरगुरुं हृदि भावयामि ॥ ( 1 )
रचना के अन्त में आर्यिका माता ने आचार्य की माता का नाम सती सीता और पिता का नाम विद्वान नथमल बताया है तथा आचार्य चन्द्रसागर की वन्दना की है - माता सीता सती यस्य नथमल्लः पिता बुधः ।
पाँचवीं स्फुट रचना है - आचार्य शिवसागरस्तोत्र । इसमें आर्यिका सुपार्श्वमती ने काव्योचित भाषा में छह श्लोकों की रचना की है । श्लोकों के प्रथम तीनों चरणों में आचार्य श्री की विशेषताओं का तथा चौथे चरण में आर्यिका माता द्वारा आचार्य श्री को नमन किये जाने का उल्लेख है। उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत है दो पद्य
-
-
मुक्ति रूप अङ्गना के लिए जिनेन्द्र द्वारा रची गयी रत्नत्रयरूपी माला को अपने गले में पहनकर जो पृथिवी पर श्रेष्ठ हुआ है, उन शिवसागर महाराज को आर्यिका सुपार्श्वमती नमन करती है।
मुक्त्याङ्गनायै रचिता मनोज्ञा रत्नत्रयीस्त्रग् भुवि या जिनेन ।
तां कण्ठमासाद्य बभूव श्रेष्ठो वन्दे मुनीशं शिवसागरं तम् ॥ ( 2 )
यह भी कहा गया है कि आचार्य श्री को प्रशंसा सुनकर सन्तोष नहीं मिलता था। इसी प्रकार विरोधियों पर वे रोष भी नहीं करते थे। सभी जीवों पर उनके कृपा भाव था । ऐसे सूरीश्वर को प्रणाम करते हुए इस रचना में उनके इन गुणों को इस प्रकार समावेश किया गया है -
प्रशंसितो यो न दधाति तोषं, विरोधितो यो न बिभर्ति रोषम् ।
सर्वेषु जीवेषु कृपां दधानं सूरीश्वरं तं प्रणमामि भक्त्या ॥ ( 3 )
इस प्रकार इन रचनाओं में काव्योचित भाषा का प्रयोग है । भाषा अलङ्कारों से अलङ्कृत, प्रसाद और माधुर्य गुण को से युक्त शान्त रस प्रधान है । भाषा मर्मज्ञता का प्रतीक है । परमपूज्य १०८ श्री आचार्य अजितसागर जी महाराज १२०
गुरुस्तवन :
44
आर्यिका श्री ने आचार्यप्रवर अजितसागर महाराज की स्तुति संस्कृतबद्ध छह श्लोकों में की है तथा 'भक्त्या नमामि सततं स्वजिताब्धिसाक्षम् " कहकर प्रबल भक्ति भावना का परिचय दिया है । इस रचना में आचार्यवर की प्रभामयी प्रतिमा एवं मानवतावादी दृष्टिकोण का विवेचन हुआ है । अथ पूजा लिख्यते (संस्कृत पूजा) आर्यिका श्री ने आचार्य प्रवर अजितसागर महाराज पर (संस्कृत पूजा ) अथ पूजा लिख्यते से प्रारंभ कर बारह संस्कृत पद्यों में पुष्पाञ्जलि अर्पित की है । अर्थात् विधिपूर्वक आचार्य श्री का आह्वान करके उनकी आराधना की है
- आराध्य मुनि श्री को जन्मजरामृत्यु के नाश हेतु जल, सांसारिक संताप से मुक्ति हेतु चन्दन, अक्षयपद प्राप्ति हेतु अक्षत कामवाण से मुक्ति हेतु पुष्प भूख और बीमारी के नाश हेतु नैवेद्य,