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________________ vi उन्हें यथावश्यक सहायता प्रदान करने तथा जैन विद्या के शोध-प्रबन्ध के प्रकाशन करने के सुझाव दिये । अतः विद्वानों के भावनानुसार परमपूज्य मुनिश्री के मंगलमय आशीष से ब्यावर में " आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र' की स्थापना की गयी । परमपूज्य मुनिवर श्री की कृपा व सत्प्रेरण से केन्द्र के माध्यम से बरकतउल्लाह खाँ विश्वविद्यालय, भोपाल, कुमायूँ विश्वविद्यालय, नैनीताल, चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय, वाराणसी, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर व रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से अनेक शोधच्छात्रों ने आ. ज्ञानसागर वाङ्मय को आधार बनाकर Ph. D. उपाधिनिमित्त पंजीकरण कराया / पंजीकरण हेतु आवेदन किया है । केन्द्र माध्यम से इन शोधार्थियों को मुनि श्री के आशीष पूर्वक साहित्य व छात्रवृत्ति उपलब्ध करायी जा रही है तथा अन्य शोधार्थियों को भी पंजीकरणोपरान्त छात्रवृत्ति उपलब्ध करायी जाएगी। केन्द्र द्वारा मुनिवर के आशीष से ही डेढ़ वर्ष की अल्पावधि में निम्न ग्रन्थों का प्रकाशन किया जा चुका है 1. इतिहास के पन्ने 3. तीर्थ प्रवर्तक 5. अञ्जना पवनञ्जयनाटक 7. बौद्धदर्शन की शास्त्रीय समीक्षा हिन्दी) 9. मानव धर्म (मूल 11. नीतिवाक्यामृत 2. हित - सम्पादक 4. 6. जैन राजनैतिक चिन्तन धारा जैन दर्शन में रत्नत्रय का स्वरुप 8. आदि ब्रह्मा ऋषभदेव 10. मानव धर्म (अंग्रेजी अनुवाद) 12. जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन केन्द्र द्वारा 12 ग्रन्थों के प्रकाशन के बाद अध्यवसायी नवोदित विद्वान् श्री नरेन्द्र सिंह राजपूत द्वारा लिखित "संस्कृत काव्यों के विकास में बीसवीं शताब्दी के मनीषियों का योगदान " नामक यह शोध प्रबन्ध संस्था द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है । यह शोध-प्रबन्ध बीसवीं शताब्दी के जैनाचार्यों / मनीषियों के कृतित्व का समग्र मूल्याङ्कन प्रस्तुत करता है तथा जैन मनीषियों के संस्कृत साहित्य को प्रदत्त अवदान का प्रतिपादन करता है । विद्वान् लेखक ने शोध सामग्री के संचयन में भगीरथ प्रयत्न किया है, केन्द्र लेखक के श्रम का अभिनन्दन करते हुए आभार व्यक्त करता है तथा आशा करता है कि केन्द्र के साहित्यिक कार्यों में लेखक का सहयोग प्राप्त होगा । मैं पुनः अपनी विनयाञ्जलि एवम् श्रद्धा-भक्तिपूर्ण कृतज्ञता अर्पित करता हूँ, परमप्रभावक व्यक्तित्व के धनी, जैन संस्कृति के सबल संरक्षक एवम् प्रचारक परमपूज्य मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज के चरणों में, जिनकी अहैतुकी कृपा - सुधा के माध्यम से ही केन्द्र द्वारा अल्पावधि में ही समय व श्रम साध्य दुरुह कार्य अनायास ही सम्पन्न हो सके । चूँकि पूज्य महाराजश्री का मंगल-आशीष एवम् ध्यान जैनाचार्यों द्वारा विरचित अप्रकाशित, अनुपलब्ध साहित्य के साथ जैन विद्या के अंगों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में किये शोध कार्यों के प्रकाशन की ओर भी गया है, अतः हमें विश्वास है कि साहित्य उन्नयन एवम् प्रसार के कार्यों में ऐसी गति मिलेगी, मानो सम्राट् खाखेल का समय पुनः प्रत्यावर्तित हो गया हो । एक बार पुनः प्रज्ञा एवम् चारित्र के पुञ्जीभूत देह के पावन कमलों में सादर सश्रद्ध नमोऽस्तु । चरण भ्रमर सुधासागर अरुणकुमार शास्त्री 'व्याकरणाचार्य' निदेशक, आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, ब्यावर (राज.)
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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