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________________ 81 रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए आचार्य प्रवर उन सभी का अपने जीवन में अपनाकर तपस्या को सार्थक (सोद्देश्य) करना चाहते हैं - सन्दर्भवश प्रस्तुत पद्य उपस्थित हुआ है - दशपरीषहकाश्च नवाधिका, इति भवन्तु समं विधिबाधकाः । यधिक विंशतिका जिन सेविता मम नु सान्त्वखिला स्तपसे हिताः ॥ हिन्दी पद्य - एक साथ उन्नीस परीषह मुनि जीवन में हो सकते, समता से यदि सहो साधु हो विधिमल पल में धो सकते । सन्त साधुओं तीर्थंकरों ने सहे परीषह सिद्ध हुए, सहूँ निरन्तर उन्नत तप हो समझू निज गुण शुद्ध हुए । ज्ञानोदय शीर्षक से प्रकाशित परीषहजय शतक ग्रन्थ के अन्त में संस्कृत पद्यों में सम्पन्न मङ्गल कामना ग्रन्थकार के उदार हृदय की मार्मिक अभिव्यक्ति है। उन्होंने साधुता की समाज में आदर बढ़ने और प्रजा में शान्ति स्थापित किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया है एवं समाज में "परिषहजय शतक के सफल होने की कामना की है विद्याब्धिना सुशिष्येन ज्ञानोदधे रत्नङ्कृतम् । रसेणाध्यात्मपूर्णेन शतकं शिवदं शुभम् ॥ ज्ञानोदयकार ने ग्रन्थ रचना के स्थान और समय का परिचय देकर भी सम्पूर्ण तथ्यों | के प्रति उदारता ही व्यक्त की है - श्री कुण्डलगिरौ क्षेत्रे भव्यैजनैः सुसेविते । हरिणनदकूलस्थे भवाब्धिकूलदर्शिनि ॥ याम व्योमाक्षगन्धे दो वीरे संवत्सरे शुभे । फाल्गुन-पूर्णिमामीत्वे तीमामितिं मितिंगतम् ।। गुरु स्मृति के माध्यम से आचार्य कुन्द कुन्द का स्मरण करते हुए अपने गुरुवर आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से आशीष पाने की प्रार्थना की है। हिन्दी पद्यों में प्रस्तुत मङ्गल कामना के अन्तर्गत अभिव्यञ्जित करते हैं कि मानव शरीर प्राप्त कर विषय सुखों को विष के समान मौत का कारण जानना चाहिये तथा तप के द्वारा कर्मों का नाश कर देना उपयुक्त है । तत्पश्चात् मोक्ष मार्ग पर चलो, जिससे दुः खों का अन्त हो सके । इस प्रकार "परिषहजय शतकम्" में मुनिमार्ग के कष्टों और उन पर स्वामित्व रखने वाले यतियों की साधना का भावपूर्ण निदर्शन है । यह ग्रन्थ मुनि जीवन के आधारभूत तथ्यों का प्रकाशक है और सामाजिक मर्यादा, शील, आचार-विचारादि की प्रेरणा प्रदान करता है। सुनीति शतक० सुनीति शतक सौ पद्यों में निबद्ध काव्य है । सुन्दर नीतियों का संग्रह होने से सुनीति शतक नाम सार्थक है । संसार में रोग, शोक और पापों की निवृत्ति हेतु इसका प्रणयन किया गया है। __अनुशीलन - आचार्य प्रवर का मन्तव्य है कि मुनियों का मुनित्व उनके कुल, वर्णादि के कारण मलिन नहीं होता कृष्ण वर्ण की गाय से धवल दुग्ध ही निकलता है । कलियुग
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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