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5. इसिभासियाइं पणयालीसं अज्झयणाइं कालियाई, तेसु दिण 45 निम्विएहिं अणागाढजोगो।
अण्णे भणतिउत्तरज्झयणेसु चेव एयाइं अतंभवंति। विधिमार्गप्रपा पृ. 58। देविदत्थयमाई पइण्णगा होंति इगिगनिविएण। इसिभासियअज्झयणा आयंबिलकालतिगसज्झा। 61 ।। केसि चि मए अंतभवंति एयाइं उत्तरज्झयणे। पणयालीस दिणेहिं केसि वि जोगो अणागाढो । 162 ।।
___ - विधिमार्गप्रपा, पृ. 62। (ज्ञातव्य है कि प्रकीर्णकों की संख्या के सम्बन्ध में विधिमार्गप्रपा में भी मतैक्य नहीं है। सज्झाय पट्ठवण विही पृ. 45 पर 11 अंग, 12 उपांग, 6 छेद, 4 मूल एवं 2 चूलिका सूत्र के घटाने पर लगभग 31 प्रकीर्णकों के नाम मिलते हैं। जबकि पृ. 57-58 पर
ऋषिभाषित सहित 15 प्रकीर्णकों का उल्लेख है।) 6. (अ) कलियसुयं च इसिभासियाइं तइओ य सूरपण्णत्ती।
सव्वो य दिविवाओ चउत्थओ होई अणुआगो।। 124 ।। (मू.भा.) तथा ऋषिभासितानि-उत्तराध्ययनादीनि, “तृतीयश्च" कालानुयोगः-आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति, पृ.206. (ब) आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे। सूयगडे निज्जुत्तिं वुच्छामि तहा दसाणं च।। कप्पस्स च निज्जुत्तिं ववहारस्सेव परमणिउणस्स। सूरिअपण्णत्तीए तुच्छं इसिभाषिआणं चं।।
-- आवश्यकनियुक्ति, 84-85 पष्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तंजहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, आयरियभासिताई, महावीर-भासिताई, खोमपसिणाई, कोमलपसणाई, अद्दागपसिवाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। ठाणंगसुवे, दसमं अज्भयणं दसट्टाणं। (महावीर जैन
विद्यालय संस्करण, पृ. 311). 8. चोत्तालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुताभासिया पण्णत्ता। समवायंगसुत्त-44 9. आहेसु महापुरिसा पुव्विं तत्त तवोघणा।
उदएण सिद्धिभावन्ना तत्थ मंदो विसीयति।।।।। अभुजिया नमी विदेही, रामपुत्ते य भुंजिआ। बाहुए उदगंभोच्चा तहा नारायणे रिसी।।2। आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी। पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य।।3।। एते पुव्वं महापुरिसा आहिता इह संभता।
भोच्चा बीओदगं सिद्ध इति मेयमणुस्सुअ।।4। -- सूत्रकृताङ्ग, 1/3/4/1-4. 10. सूत्रकृतांग, 2/6/1-3, 7, 9 11. भगवती शतक, 15. 12. उपासकदशांग, अध्याय 6 एवं 7. 13. (अ) सुत्तनिपात 32 सभियसुत्त,
(ब) दीघनिकाय, सामज्यफलसूत्र।
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान