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________________ जाता है। यौगिक साधना के लिये शुभचन्द्र ने मंगलकारी ध्यान ( auspicious meditation) की पूर्व तैयारी (pre-requisite of auspicious meditation) के लिये 4 प्रकार की भावनाएँ (four fold virtues) बताई हैं - 1. मैत्री - सभी प्राणियों के साथ मित्रता का भाव (friendship with all beings) 2. प्रमोद - दूसरों के गुणों की प्रंशसा की वृत्ति (appriciations of lee merits) 3. करुणा - अभावग्रस्त लोगों के प्रति सहानुभूति (sympathy towards the needy persons) माध्यस्थ - विरोधी जनों या अनैतिक आचरण करने वालों के प्रति समभाव (equanimity or indeference towar unruly) दृष्टव्य है कि ये चार भावनाएँ बौद्धों में और पतंजलि के योगसूत्र में समान रूप से मानी गईं है । दूसरी बात यह है कि धर्मध्यान की विवेचना करते हुए इन उसके चार प्रकार बताए - पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत। साथ ही, पिण्डस्थ ध्यान की धारणा के पाँच भेद- पार्थिवी, आग्नेयी, वायवी (श्वसत्र), वारूणी और तत्वरूपवती बताये हैं । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ये चार प्रकार के ध्यानों में धर्मध्यान की पाँच प्रकार की धारणाएँ बौद्ध और हिन्दू ग्रन्थों में पायी जाती है, प्राचीन जैन साहित्य में नही। शुभचन्द्र के बाद जैनयोग के अन्य प्रमुख आचार्य हैंहेमचन्द्र। यद्यपि हेमचन्द्र ने अपने योगशास्त्र में सामान्यतः जैनों के त्रिरत्नोंसम्यक्-ज्ञान, सम्यक्-दर्शन और सम्यक् - चरित्र का ही विवेचन किया है, लेकिन इसमें उन्होंने सम्यक्-चरित्र पर ही बहुत अधिक जोर दिया है। ध्यान के चार प्रकारों का विवेचन करते हुए उन्होनें भी पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, और रूपातीत ध्यान का वर्णन पाँच धारणाओं के साथ किया हैं । लेकिन इस संदर्भ में विद्वानों का मत है कि उन्होंने ये विचार शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव से लिये हैं । यह ग्रन्थ उनके योगशास्त्र से पहले का है । 4. संक्षेप में ध्यान और धारणा के ये भेद पहले शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव से लिये और तब हेमचंद्र ने शुभचन्द्र का अनुगमन किया । इस प्रकार इस काल में जैन योग पर अन्य योगसाधनाओं का प्रभाव सरलता से देखा जा सकता है । इसकाल में अन्य योग पद्धति का जैनियों पर प्रभाव जिनभद्र के ध्यानशतक और पूज्यपाद के समाधिशतक इस काल की प्रारम्भिक कृतियाँ हैं, जिनमें हमें अन्य योग साधना पद्धतियों का प्रभाव नहीं दिखाई देता है। क्योंकि जैन साहित्य में ध्यानशतक एवं समाधिशतक में ही जैनों की मान्यता के अनुसार चार ध्यानों का वर्णन है । इसकाल में जैन योग पर अन्य योग जैन धर्मदर्शन 467
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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