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(Steadeness of mind) प्रेक्षा और आत्म सजगता (Self awareness) का अनुभव था। सूत्रकृतांग के 8वें अध्याय में यह उल्लेख भी है कि आत्मोन्नति एवं मुक्ति (emancipation) के प्रमुख साधन हैं - ध्यान, योग और तितीक्षा है । भगवती, औपापतिक और दशाश्रुतस्कंध जैसे जैन आगम ग्रन्थों में भी हमें अनेक प्रकार से आसनों के नाम मिलते है । जैन धर्म ग्रन्थों में ऐसा भी उल्लेख है कि भगवान महावीर ने केवलज्ञान को गोदुहासन में प्राप्त किया था ।
4. प्राणायाम
पतंजलि की योग पद्धति का चतुर्थ सोपान प्राणायाम है। जैन आगम साहित्य में इसके सम्बन्ध में हमें कोई स्पष्ट निर्देशन नहीं मिलता है, केवल आवश्यक सूत्र की चूर्णि भाग- 2 पृष्ठ 265 (7वी शती) में यह उल्लेख मिलता है कि वार्षिक प्रतिक्रमण (Yearly Penitential retreat ) के अवसर पर व्यक्ति को एक हजार श्वासोच्छवास का ध्यान (कार्यात्सर्ग) करना चाहिये। इसी प्रकार चातुर्मासिक प्रतिक्रमण के अवसर पर पाँच सौ श्वासोच्छवास का, पाक्षिक प्रतिक्रमण के अवसर पर दो सौ पचास श्वासोच्छवास का, दैवसिक प्रतिक्रमण के अवसर पर एक सौ और रात्रिकालीन प्रतिक्रमण के समय पचास श्वासोच्छवास का ध्यान करना चाहिये । ज्ञातव्य है कि यहाँ एक श्वास को लेने और छोड़ने के काल को मिलाकर एक श्वासोच्छवास कहा गया है। मेरे विचार से यह ऐसा ही था जैसा कि आज भी बौद्ध सम्प्रदाय के विपश्यना ध्यान-साधना की आनापानसति और तेरापंथ जैन सम्प्रदाय के आचार्य महाप्रज्ञ के प्रेक्षाध्यान की श्वास- प्रेक्षा की पद्धति है। प्रारंभिक जैन धार्मिक ग्रंन्थों में कुंभक, पूरक, रेचक का कोई संदर्भ मुझे नहीं मिला, यद्यपि बाद में जैन आचार्य शुभचन्द्र और हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ क्रमशः ज्ञानार्णव और योगशास्त्र में अनेक प्रकार के प्राणायामों का उल्लेख किया है ।
5. प्रत्याहार
पतंजलि योग सूत्र का पाँचवा सोपान प्रत्याहार है । प्रत्याहार का अर्थ है अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण रखना । जैन-धर्म में इसका विस्तारपूर्वक विवेचन प्रतिसलीनता नाम से छठवें बाह्यतप के रूप में किया गया है । अनेक जैन आगमों में इन्द्रिय-संयम नाम से भी योग के इस पाँचवे अंग का वर्णन हुआ है उत्तराध्ययन सूत्र के 32 वें अध्याय ( 21 - 86 ) में इसका विशद विवेचन है ।
6. धारणा
पतंजलि की योग साधना पद्धति के छटवें, सातवें और आठवें सोपान क्रमशः धारणा, ध्यान, समाधि है यद्यपि जैन तर्कशास्त्र में मतिज्ञान का चौथा प्रकार धारणा के रूप में माना जाता है, किन्तु वहाँ धारणा का आशय जैन तर्कशास्त्र की
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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