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5. पं. दलसुखभाई मालवणिया-आत्ममीमांसा (जैन संस्कृति संशोधन मण्डल) 6. रविन्द्रनाथ मिश्रा, जैन कर्म सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास (पार्श्वनाथ शोधपीठ,
वाराणसी-5, 1985), पृ. 8 7. वही, पृ. 9-10 8. रागो य दोसो वि य कम्मबीयं, उत्तराध्ययनसूत्र 32/7 9. (अ) समवायांग 5/4 (ब) इसिभासियाइं 9/5 (स) तत्त्वार्थसूत्र 8/1 10. कुन्दकुन्द, समयसार 171 11. (अ) अठविहं कम्मगंथि - इसिभासियाई 31
(ब) अट्ठविहमम्मरण्यमलं--इसिभासियाइं 32 12. उत्तराध्ययनसूत्र (सं. मधुकरमुनि), 33/2-3 13. वही, 33/4-15 14. अगुत्तरनिकाय उद्धृत उपाध्याय भरतसिंह, बौद्धदर्शन और अन्य भारतीय दर्शन, पृ.
463 15. देखें-आचार्य नरेन्द्रदेव, बौद्ध धर्म दर्शन, पृ. 250 16. देवेन्द्रसूरि, कर्मग्रन्थ प्रथम, कर्मविपाक, गाथा 1 17. पं. सुखलाल संघवी, दर्शन व चिन्तन, पृ. 225 18. आचार्य नेमिचन्द, गोम्मटसार, कर्मकाण्ड-6 19. आचार्य विद्यानन्दी, अष्टसहस्त्री, पृ. 51, उद्धृत -- Tatia Dr Nathmal Tatia, ___ studies-in Jaina Philosophy (P.V. Resarch Institute, Varanasi-5, p. 227 20. कर्मग्रन्थ - प्रथम, कर्म विपाक - भूमिका पं. सुखलाला संघवी, पृ. 24 21. सागरमल जैन - जैन कर्म सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन पृ. 17-18 22. (अ) महाभारत : शान्तिपर्व (गीता प्रेस, गोरखपुर) पृ. 129
(ब) लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, गीतारहस्य पृ, 268 23. आचार्य नरेन्द्र देव, बौद्ध धर्म दर्शन, पृ. 277 24. (अ) देखें-उत्तराध्ययनसूत्र--सम्पादक मधुकरमुनि 4/4/13,23/1/30
(ब) भगवतीसूत्र 1/2/64 25. देखें - (अ) Nathmal Tatia, Tatia, Studies in Jaina Philosophy (P.V.R.I),
P. 254.
(ब) सागरमल जैन - जैन कर्मसिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 24-27 26. सागरमल जैन - जैन कर्मसिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 35/36 27. वही, पृ. 36-40 28. ज्ञातव्य है कि प्रस्तुत विवरण तत्त्वार्थसूत्र 6 एवं 8, कर्म ग्रन्थ प्रथम कर्मविपाक, पृ.
54-61, समवायांग 30/1 तथा स्थानांग 1/4/4/373 पर आधारित है। 29. योगशास्त्र (हेमचन्द्र), 4/107. 30. स्थानांग, टीका (अभयदेव), 1/11-12 31. जैनधर्म, मुनिसुशीलकुमार, पृ. 84 32. समयसारनाटक, बनारसीदास, उत्थानिका 28 33. भगवतीसूत्र, 7/10/121 396
___ जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान