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________________ शुभनाम कर्म के बन्ध के कारण जैनागमों में अच्छे व्यक्तित्व की उपलब्धि के चार कारण माने गये हैं - 1. शरीर की सरलता, 2. वाणी की सरलता, 3. मन या विचारों की सरलता, 4. अहंकार एवं मात्सर्य से रहित होना या सामंजस्यपूर्ण जीवन । शुभनामकर्म का विपाक उपर्युक्त चार प्रकार के शुभाचरण से प्राप्त शुभ व्यक्तित्व का विपाक 14 प्रकार का माना गया है - (1) अधिकारपूर्ण प्रभावक वाणी (इष्ट- शब्द) (2) सुन्दर सुगठित शरीर (इष्ट-रूप) (3) शरीर से निःसृत होने वाले मलों में भी सुगंधि (इष्ट-गंध) (4) जैवीय-रसों की समुचितता ( इष्ट-रस ) (5) त्वचा का सुकोमल होना (इष्ट-स्पर्श) (6) अचपल योग्य गति (इष्ट- गति) (7) अंगो का समुचित स्थान पर होना (इष्ट-स्थिति) (8) लावण्य ( 9 ) यशःकीर्ति का प्रसार (इष्ट-यशः कीर्ति) (10) योग्य शारीरिक शक्ति (इष्ट- उत्थान, कर्म, बलवीर्य, पुरुषार्थ और पराक्रम) (11) लोगों को रुचिकर लगे ऐसा स्वर ( 12 ) कान्त स्वर ( 13 ) प्रिय स्वर और ( 14 ) मनोज्ञ स्वर । अशुभनाम कर्म के कारण निम्न चार प्रकार के अशुभाचरण से व्यक्ति (प्राणी) को अशुभ व्यक्तित्व की उपलब्धि होती है - ( 1 ) शरीर की वक्रता, ( 2 ) वचन की वक्रता (3) मन की वक्रता और (4) अहंकार एवं मात्सर्य वृत्ति या असामंजस्य पूर्ण जीवन । - अशुभ नाम कर्म का विपाक - 1. अप्रभावक वाणी ( अनिष्ट - शब्द), 2. असुन्दर शरीर (अनिष्ट-स्पर्श), 3. शारीरिक मलों का दुर्गन्धयुक्त होना ( अनिष्ट गन्ध), 4. जैवीयरसों की असमुचितता (अनिष्टरस), 5. अप्रिय स्पर्श, 6. अनिष्ट गति, 7. अंगो का समुचित स्थान पर न होना ( अनिष्ट स्थिति), 8 सौन्दर्य का अभाव, 9. अपयश 10. पुरुषार्थ करने की शक्ति का अभाव, 11. हीन स्वर, 12. दीन स्वर, 13. अप्रिय स्वर और 14. अकान्त स्वर । 7. गोत्र कर्म जिसके कारण व्यक्ति प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित कुलों में जन्म लेता है, वह गोत्र कर्म है। यह दो प्रकार का माना गया है - 1. उच्च गोत्र ( प्रतिष्ठित कुल) और 2. नीच गोत्र (अप्रतिष्ठित कुल ) । किस प्रकार के आचरण के कारण प्राणी. का अप्रतिष्ठित कुल में जन्म होता है और किस प्रकार के आचरण से प्राणी का प्रतिष्ठित कुल में जन्म होता है, इस पर जैनाचार - दर्शन में विचार किया गया है I अहंकार वृत्ति ही इसका प्रमुख कारण मानी गई है। जैन धर्मदर्शन 391
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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