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23. बाला वंयति एवं वेसो तित्थंकराण एसोवि।
नमणिज्जो धिद्धि अहो सिरसूलं कस्स पुक्करिमो।।
वही, 2/76 24. वरं वाही वरं मच्चू वरं दरिद्दसंगमो।
वरं अरण्णेवासो य मा कुसीलाण संगमो।। हीणायारो वि वरं मा कुसीलाण संगमों भदं। जम्हा हीणो अप्प नासइ सव्वं हु सील निहिं।।
- वही, 2/101 - 102 25. विस्तार के लिए देखें सम्बोधप्रकरण गुरुस्वरूपाधिकार। इसमें 37 गाथाओं में सुगुरु का
स्वरूप वर्णित है। 26. नो अप्पणा पराया गुरुणो कइया विहुति सड्ढाणं।
जिण वयण रयणनिहिणो सव्वे ते विन्निया गुरुणो।। वही, गुरुस्वरूपाधिकारः 3
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान