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जैविक
अतिजैविक
सामाजिक
आध्यात्मिक
आर्थिक शारीरिक मनोविनोद संगठनात्मक चारित्रिक बौद्धिक कलात्मक धार्मिक
अरबन ने सबसे पहले मूल्यों को दो भागों में बाँटा है - (1) जैविक और (2) अति जैविक । अतिजैविक मूल्य भी सामाजिक और आध्यात्मिक ऐसे दो प्रकार के हैं। इस प्रकार मूल्यों के तीन वर्ग बन जाते हैं1. जैविक मूल्य- शारीरिक, आर्थिक और मनोरंजन के मूल्य जैविक मूल्य हैं।
आर्थिक मूल्य मौलिक-रूप से साधन मूल्य हैं साध्य नहीं। आर्थिक शुभ स्वतः मूल्यवान नहीं है, उनका मूल्य केवल शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों को अर्जित करने के साधन होने में है। सम्पत्ति स्वतः वांछनीय नहीं है। बल्कि अन्य शुभों का साधन होने के कारण वांछनीय है। सम्पत्ति एक साधन-मूल्य है, साध्य-मूल्य नहीं। शारीरिक मूल्य भी वैयक्तिक मूल्यों के साधक हैं। स्वास्थ्य और शक्ति से युक्त परिपुष्ट शरीर को व्यक्ति अच्छे जीवन के अन्य मूल्यों के अनुसरण में प्रयुक्त कर सकता है। क्रीड़ा स्वयं मूल्य है; किन्तु वह भी मुख्यतया साधक-मूल्य है। उसका साध्य है शारीरिक स्वास्थ्य। मनोरंजन चित्तविक्षोभ को समाप्त करने का साधन है। क्रीड़ा और मनोरंजन उच्चतर मूल्यों के अनुसरण के लिए हमें शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से स्वस्थ
रखते हैं। 2. सामाजिक मूल्य - सामाजिक मूल्यों के अन्तर्गत साहचर्य तथा चरित्र के मूल्य
आते हैं। आज के मानवतावादी युग में तो इन मूल्यों का महत्त्व अत्यन्त व्यापक हो गया है। यद्यपि ये दोनों मूल्य किसी अन्य साध्य के साधन-स्वरूप प्रयुक्त होते हैं, परन्तु कुछ महान पुरूषों ने सच्चरित्रता एवं समाजसेवा को जीवन के परम लक्ष्य के रूप में ग्रहण किया है। मनुष्य समाज का अंग है। एक असीम आत्मा का साक्षात्कार समाज के साथ अपनी वैयक्तिकता का
एकाकार करके ही किया जा सकता है। 3. आध्यात्मिक मूल्य - मूल्यों के इस वर्ग के अन्तर्गत बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक एवं
धार्मिक-तीन प्रकार के मूल्य आते है। ये तीनों मूल्य मूलतः साध्य मूल्य हैं।
जैन धर्मदर्शन
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